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अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय
१९७ हेमचन्द्र ने भी भूमिदान महात्म्य को स्वीकार किया है।' भू-स्वामित्व का हस्तान्तरण तथा विकेन्द्रीकरण
___ ग्राम आदि भूमिदानों से भूमि के हस्तान्तरणीय वैशिष्ट्य पर भी जैन महाकाव्य महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। कृषि-दास प्रथा के कारण किसानों द्वारा जोती जाने वाली भूमि के वास्तविक स्वामी किसान नहीं रहे थे और न ही किसान का भूमि पर किसी प्रकार का वैधानिक अधिकार ही पहुंच पाता था। भूमि सम्बन्धी अधिकारों के सम्बन्ध में दो प्रकार की विशेषताएं दृष्टिपथ में आती हैं । एक विशेषता जिसके अनुसार राजा ब्राह्मण आदि जातियों को 'अग्रहार' नामक ग्राम दान के रूप में देते थे। दूसरी विशेषता यह रही थी कि प्रायः राजा दूसरे सामन्त राजामों से भी ग्राम-नगर आदि दान में लेते थे। स्वाभाविक ही है कि इस दान में दिये गये ग्रामों के स्वामित्व का अधिकार हस्तान्तरणीय रहा होगा तथा इन ग्रामों के खेतों आदि में कार्य करने वाले कृषक आदि एक प्रकार से राजा आदि के अधीन हो जाते थे ।५ किन्तु कृषकों की यह अधीनता प्रत्यक्ष रूपेण राजा से प्रभावित न होकर ग्राम के जमींदारों, ग्राम-प्रधानों अथवा ग्रामाधीशों के माध्यम से अनुशासित थी।६ इन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ग्रामों के विकेन्द्रीकरण' की
१. तु०-कन्यादानं महीदानं प्रदानमयसामपि । तिलदानं कासिदानं दानं गवामपि ।।
–त्रिषष्टि०, ३.७.१५८ तथा० तु०-वराङ्ग०, ७.३४ २. शर्मा, भारतीय सामन्तवाद, पृ०, १५ ३. Thapar, Romila, A History at India, I, p. 176 ४. वराङ्ग०, ११.६७ ५. नेमिचन्द्र, प्रादिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ३६०
'The tendency from the seventh century onwards of granting land in lieu of cash salaries intensified the feudal process. The work of cuitivation was carried out by peasants, generally Shudras, who in effect were almost tried to the land and who handed over as fixed share of their assigned land to cultivators from whom they collected the revenue agreed upon. Part of the revenue from the land they sent to the King. Out of the vassal he was expected to maintain the feudal levies which,