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________________ १७४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज में लौह निर्मित दण्ड (लौहदण्ड) का भी उल्लेख पाया है।' मुक्तवर्ग के आयुधों में 'दण्ड' की गणना नहीं की गई है। दीक्षितार के अनुसार 'तोमर' के अन्तर्गत या उससे मिलते जुलते शस्त्र को 'दण्ड' की संज्ञा दी जा सकती थी। तोमर के जिन दो भेदों लौह दण्ड अथवा सामान्य दण्ड का 'लक्षणप्रकाश' में उल्लेख पाया है वह सम्भवतः 'दण्ड' की ही वास्तविक स्थिति रही होगी। २२. लोहदण्ड - 'दण्ड' का ही एक भेद विशेष । इसे 'लौहवृत्त' भी कहा जाता था। २३. क्षपण –वराङ्गचरित महाकाव्य में इसे प्रहारात्मक शस्त्र के रूप में वर्णित किया गया है। २४. यष्टि -बांस का दण्ड विशेष । २५. कुश'°सम्भवतः कुश की नोंक जैसा दुर्गभेदक शस्त्र ।११ २६. गोलक१२-यन्त्र द्वारा चलाए जाने वाला प्रक्षेपणात्मक शस्त्र । २७. लोह-गोलक | 3-लौह विशेष से निर्मित प्रक्षेपणात्मक गोला । २८. वह्नि गोलक १४-अग्नि कणों से युक्त प्रक्षेपणात्मक-गोला । (ख) अमुक्त वर्ग के प्रायुध-अमुक्त वर्ग के अन्तर्गत ऐसे आयुधों को समाविष्ट किया जाता था जिन्हें फेंका या छोड़ा नहीं जाता था। नीतिप्रकाशिकाकार ने 'अमुक्त' आयुधों के अन्तर्गत वज्र, ईली, परशु, गोशीर्ष, असिधेनु, लवित्र, प्रास्तर, कुन्त, स्थूण, प्रास, पिनाक, गदा, मुद्गर, सीर, मुसल, पट्टिश, मौष्टिक, १. तु०-"केचित्पुनर्लोहनिबद्धदण्डैः" । वराङ्ग०, १७.५४ २. Dikshitar, War in Ancient India, p. 107 ३. वही, पृ० १०७, पाद टि०, ५३ ४. वराङ्ग०, १७.५४, पद्मा०, १७.४३ ५. वराङ्ग०, १७.५४ ६. वही, १४.१६ ७. तु०-"क्षपणैः प्रहारः”। वही, १४.१६ ८. द्वया०, ६.५६ ६. Narang, Dvyasraya, p. 180 १०. हम्मीर०, १३.४२ ११. वही, ३.११८ १२. वही, ३.११८, ११.१०० १३. वही, ११.१५ १४. वही, १३.४२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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