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________________ युद्ध एवं सैन्य व्यवस्था १७३ जाता था।' दीक्षितार ने इसकी लम्बाई ३० हाथ मानी है जिसे तीन मण्डलाकृतियों में लपेटा जाता था।२ 'पाश' का वर्ण नीला कहा गया है। १६. चक -मध्यरन्ध्र कुण्डलाकार नीले वर्ण वाले चक्र नामक शस्त्र के ग्रथन', 'भ्रामण', 'क्षेपण', 'कर्तन' 'दलन'–पाँच कार्य सम्भव थे। इसके तीन भेद रहे थे (१) आठ आरों वाला चक्र (२) छह पारों वाला चक्र तथा (३) चार आरों वाला चक्र। कौटिल्य ने इसे चालित यन्त्र की संज्ञा दी है। २०. भुशुण्डी–तीन हाथ लम्बा शस्त्र विशेष उन्नत ग्रन्थि, टेढी लकडी की मूठ वाला शस्त्र था। कृष्ण सर्प के समान इसकी अग्र प्राकृति होती थी। भुशुण्डी के ‘यापन' और 'घूर्णन' दो मुख्य कार्य कहे गए हैं। इसकी 'भुसुण्डी', 'भूशुण्डी', 'भूसण्डी' आदि अनेक संज्ञाएं प्रचलित थीं। संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ में इसे चमड़े से निर्मित पत्थर फेंकने वाला अस्त्र कहा गया है ।१० दीक्षितार महोदय इसे 'मूसल' सदृश मानते हैं।११ होपकिन्स के अनुसार महाभारत कालीन 'भुशुण्डी' वह हस्त संचालित यन्त्र था जिससे डण्डे या गोलाकार पत्थर आदि फेंके जा सकते थे।१२ २१. दण्ड –सम्भवतः काष्ठ-निर्मित शस्त्र विशेष था। वराङ्गचरित महाकाव्य १. नीति०, ४.४५-४६ । २. Dikshitar. War in Ancient India, p. 109 ३. नीति०, ४.४५ पर सीतारामकृत तत्त्वविवृत्ति, पृ० ४६ ४. वराङ्ग०. १७.७७, प्रद्युम्न०, १०.२; चन्द्र०, १५.१२७, त्रिषष्टि ०, ४.१.७१७, जयन्त०, १४.७७, हम्मीर०, १०.८ ५. नीति०, ४४७-४८ ६. Dikshitar, War in Ancient India, p. 109 ७. वही, पृ० १०६ ८. जयन्त०, १४.७७ ६. नीति० ४.५१-५२ १०. संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ, पृ० ८६० ११. Dikshitar, War in Ancient India, p. 109 १२. Hopkins, J. A. O. S., Vol. 13, p. 29 2 १३. वराङ्ग०, १४.१५, चन्द्र०, १५.४८; जयन्त०, १४.१०१; हम्मीर०, ९:१५५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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