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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज धनुष का भी उल्लेख मिलता है ।' धनुष का दण्ड चार हाथ अथवा छह फुट लम्बा होता था ।२ कौटिल्य के अनुसार धनुष चार प्रकार से बनाए जा सकते थे:- (१) 'ताल' (ताड़ निर्मित) (२) 'पाप' (बांस-निर्मित) (३) 'दाख' (काष्ठनिर्मित) तथा (४) 'शाङ्ग' (हड्डियों अथवा सींगों से निर्मित)३ । धनुष वह यन्त्र विशेष था जिससे
बाण इत्यादि फेंके जाते थे। २. बाण - बांस अथवा लोहे से निर्मित होते थे। कौटिल्य ने पांच प्रकार के जिन
बाणों का उल्लेख किया है वे हैं-वेणु, शर, शलाका, दण्डसार तथा नाराच ।५ प्रथम तीन काष्ठ निर्मित थे । दण्डसार आधे लोहे प्राधे बांस से निर्मित होता था। नाराच सम्पूर्ण रूप से लौह निर्मित होता था। बारण सदृश अन्य प्रायुध-जैन संस्कृत महाकाव्यों में बाण सदृश
निम्नलिखित आयुधों का उल्लेख आया है३. नाराच --सम्पूर्णतः लौह निर्मित बाण विशेष । ४. अमोध-बाण विशेष । ५. शिलीमुख -बाण विशेष । ६. उर्ध्वमुख-उर्ध्वमुखी बाण विशेष । ७. अधोमुख'१-अधोमुखी बाण विशेष ।
१. अग्निपुराण, २५५.५-६, ७-१० २. Dikshitar, war in Ancient India, p. 95 ३. अर्थशास्त्र २.१८ ४. वराङ्ग, १७.४६; प्रद्युम्न०, ६.६६; चन्द्र०, ६.१०१; जयन्त, १०.६५;
सनत्कुमार०, २०.७८; हम्मीर०, १३.३२ ५. अर्थशास्त्र, २.१८ ६. वही, २.१७ ७. जयन्त०, १४.७७ ८. प्रद्युम्न० १०.४४ ९. चन्द्र०, १५.१०८, १२५ १०. हम्मीर० ११.८५ ११. वही, ११.५५