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युद्ध एवं सैन्य व्यवस्था
ने 'खड्ग' को एक पृथक् पाँचवे प्रकार के रूप में निर्दिष्ट किया है ।' प्रायुधों के अन्तर्गत शस्त्र-अस्त्र में मुख्य भेद यह स्वीकार किया गया है कि 'शस्त्र' हाथों द्वारा चलाया जाता था तो 'अस्त्र' यन्त्र द्वारा संचालित हो सकते थे ।२
___षत्रिंशदायुध-आलोच्य जैन संस्कृत महाकाव्यों में अनेक बार 'षटत्रिंशदायुधानि' का प्रयोग पाया है। इन छत्तीस प्रकार के आयुधों की परम्परागत मान्यता एवं संख्या इस प्रकार कही गई है---
(१) चक्र (२) धनुष (३) वज्र (४) खड्ग (५) क्षुरिका (६) तोमर (७) कुन्त (८) त्रिशूल (8) शक्ति (१०) परशु (११) मक्षिका (१२) भल्ली (१३) भिन्दिपाल (१४) मुष्टि (१५) लुण्ठि (१६) शकु (१७) पाश (१८) पट्टिश (१६) रिष्टि (२०) कणय (२१) कम्पन (२२) हल (२३) मूसल (२४) गुलिका (२५) कर्तरि (२६) करपत्र (२७) तरवारी (२८) कुद्दाल (२६) दुष्फोट (३०) गोफनि (३१) डाह (३२) डच्चूस (३३) मुद्गर (३४) गदा (३५) घन तथा (३६) करवालिका।४
१. प्राक्रमरणात्मक आयुध
सामान्यतया आयुधों के दो मुख्य प्रकार हैं (१) आक्रमणात्मक आयुध तथा (२) सुरक्षात्मक प्रायुध । प्रथम वर्ग में निम्नलिखित प्रायुध रखे जा सकते हैं।
(क) मुक्त वर्ग के प्रायुध- प्राचीन भारतीय आयुधविज्ञान की मान्यताओं के सन्दर्भ में प्रक्षेपणात्मक प्रायुधों को 'मुक्त' प्रायुधों की संज्ञा दी गई है। ये या तो हाथ से फेंके जा सकते थे (पाणिमुक्त) या फिर यन्त्र की सहायता से संचालित होते थे (यन्त्रमुक्त)। नीतिप्रकाशिका के अनुसार परम्परागत मुक्त
आयुधों की संख्या बारह कही गई है-धनुष, बाण, भिण्डिवाल, शक्ति, द्रुधरण, तोमर, नलिका, लगुड, पाश, चक्र, दन्तकण्टक, तथा भुशुण्डी ।५ इसी परिप्रेक्ष्य में जैन संस्कृत महाकाव्यों में वरिणत आयुधों का विवेचन इस प्रकार है१. धनुष-प्रायः बांस अथवा सींग से निर्मित होते थे। अग्निपुराण में लौह
१. नीतिप्रकाशिका, सर्ग-३ २. Sharma, Major Gautam, Indian Army through the Ages,
Madras, 1966, p. 21 ३. द्वया०, ११.५१; पद्मा०, ४.२२, हम्मीर०, १२.१२ ४. पद्मा० ४.२२ पर अभयतिलकगणिकृतटीका ५. नीति० २.१७-१८ ६. वराङ्ग०, १७.७१; द्विस०, ६.२७; प्रद्युम्न०, १०.४३, चन्द्र०, १५.४८;
कीर्ति०, ५.२७; जयन्त०, १४.७७; हम्मीर०, १३.३१, सनत्कुमार०, २०.७५