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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
है ।' तदनन्तर सार्थ पति की प्राज्ञा से वैद्यों ने वराङ्ग के रक्त से लथपथ शरीर को जल से धोया और घावों को भरने वाली उत्तम श्रौषधियों को लगा कर कुछ ही दिनों में उसे स्वस्थ बना दिया ।
श्रायुध वर्णन
मानव सभ्यता के विकास के अनुरूप आयुधों का भी विकास होता रहा है । प्रारम्भ में श्रायुधों की संख्या सीमित थी परन्तु उत्तरोत्तर युगों में युद्धों के वातावरण से राज्य संस्था जब विशेष प्रभावित हुई तो विविध प्रकार के आयुधों की तकनीक भी विकसित हुई । ऋग्वेद के काल में ऋष्टि, बारण, अंकुश, तूणीर, वज्र, कृपाण, परशु श्रादि श्रायुधों का युद्ध में प्रायः प्रयोग होता था । 3 अथर्ववेद के काल तक विषाक्त बारणों का भी श्राविष्कार हो चुका था । 'शतघ्नी' भी एक वैदिक कालीन उल्लेखनीय श्रायुध था जिसके प्रयोग से सौ व्यक्ति तक मारे जा सकते थे । आयुध विभाग
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कौटिल्य के अर्थशास्त्र में आयुधों के आठ विभागों का उल्लेख मिलता है(१) स्थिर यन्त्र, (२) चलयन्त्र ( ३ ) हलमुख ( ४ ) धनुष ( ५ ) बारण सदृश शस्त्र (६) खड्ग सदृश शस्त्र एवं ( ८ ) यन्त्र चालित अस्त्र । ६ अग्नि पुराण और विष्णुधर्मोत्तरपुराण में श्रायुधों को पाँच श्रेणियों में विभक्त किया गया है— (१) यन्त्रमुक्त, ( २ ) पाणिमुक्त, (३) मुक्तामुक्त ( ४ ) प्रमुक्त तथा ( ५ ) नियुद्ध अथवा बाहुयुद्ध | धनुर्वेद के एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ वैशम्पायनकृत नीतिप्रकाशिका में आयुधों के चार विभाग उपलब्ध होते हैं - (१) मुक्त ( २ ) अमुक्त (३) मुक्तामुक्त एवं ( ४ ) मन्त्रमुक्त । इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि नीतिप्रकाशिकाकार
१. वराङ्ग०, १४.५४
२. वही, १४.६०
३. ऋग्वेद, ५.५२.६, ५.५६.२, ८.१७.१० ५.५७.२, १०.४८.३; १०.२२.१०;
१०.२८.८
४. अथर्ववेद, ४.६.६
५.
कृष्णयजुर्वेद, १.५.७.६
६. अर्थशास्त्र, २.१८.३६
७. अग्निपुराण, २४६-२५२
८. विष्णुधर्मोत्तरपुराण, २ १७८ - १८२
९. मुक्तं चैव ह्यमुक्तं च मुक्तामुक्तमतः परम् ।
मन्त्रमुक्तं च चत्वारि धनुर्वेदपदानि वै ॥
नीतिप्रकाशिका, २.११