________________
युरी एवं सैन्य व्यवस्था
१६७
हुआ है।' ये गुरिल्ला पद्धति से लड़ने वाली जातियाँ युद्ध में भूमिगत खानों का भी प्रयोग करती थीं।
वनों की गुफाओं इत्यादि में गुप्त रूप से रहना चाहमान राजपूत सेना के लिए सुसाध्य था। हम्मीर० में राजपूत एवं यवन सेना के मध्य हुए गुरिल्ला युद्ध का भी वर्णन मिलता है।
योद्धाओं का दाह-संस्कार
युद्ध समाप्त होने के बाद 'रण-संशोधन अर्थात् रणस्थल के निरीक्षण करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं ।५ राजा के सेवक रण में मारे गए योद्धाओं का निरीक्षण करते थे तथा महत्त्वपूर्ण विपक्षी व्यक्तियों यथा राजा अथवा युवराज आदि के कटे हुए सिर को राजा तक पहुंचाया जाता था।
मृतक योद्धाओं की मृत्यु के समाचार को उनके सम्बन्धियों तक भी पहुंचाया जाता था। मृतक योद्धा के सम्बन्धी प्राकर युद्ध भूमि में अपने व्यक्ति के शव को पहचान कर वहीं बाणों की चिता तैयार करके दाह संस्कार कर देते थे।
पाहत योद्धाओं की प्राथमिक चिकित्सा
वराङ्गचरित के अनुसार युद्ध में राजा के साथ वैद्य इत्यादि भी जाते थे। असंख्य योद्धाओं के युद्धभूमि में आहत हो जाने के कारण उनमें से सभी को प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा देना सम्भवतः व्यावहारिक न रहा हो किन्तु युद्ध भूमि में प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था होती अवश्य थी। वराङ्गचरित में वराङ्ग के युद्ध भूमि में पाहत हो जाने पर उपचारार्थ उसके शरीर को हाथों से दबाकर, शीतल जल के छींटे देकर, चन्दन जल को मस्तक 'प्रदेशों पर लगाकर तथा पंखे से हवा कर, वराङ्ग की मूच्छितावस्था को दूर करने का उल्लेख पाया
१. द्वया०, ६.७६ २. Narang, Dvayasraya, p. 177-78 ३. हम्मीर०, ११.२३ ४. वही, ६.१४५-५१ ५. रणं संशोधयामास । चन्द्र०, १५.१३१ ६. वही, १५.१३३ ७. वही, १५.१३२ ८. वराङ्ग०, १४.६०