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________________ १६६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज युवराज अथवा किसी राजपुरुष के दर्शन मात्र से ही पुलिन्द लोग भयभीत हो जाते थे और युद्ध करने के लिए सन्नद्ध रहते थे।' पुलिन्द लोग डण्डे, धनुष बाण, तलवार सदृश साधारण स्तर के आयुधों से सदैव लैस रहते थे। पुलिन्द अजीब सी वेशभूषा धारण करके झुण्डों के रूप में विचरण करते थे। ये लोग स्वभाव से निर्दयी होते थे। पुलिन्दों की पृथक् आवासीय बस्तियां होती थीं जहां इनका राजा भी होता था ।५ पुलिन्द जातियां प्रायः राजानों तथा धनी सार्थवाहों से विशेष द्वेष रखती थीं। राजकुमार आदि के साथ दुर्व्यवहार करने का स्पष्ट उल्लेख वराङ्गचरित में प्राप्त होता है । इसके अतिरक्त एक धनी सार्थवाह के धन को लूटने के उद्देश्य से पुलिन्द सेना तथा सार्थवाह सेना के मध्य घमासान युद्ध होने का उल्लेख भी हुआ है । पुलिन्द लोग 'गुरिल्ला-पद्धति' के युद्ध में विशेष दक्ष होते थे तथा अचानक ही धोखे से आक्रमण करना इनकी विशेषता थी। वराङ्गचरित के अनुसार पुलिन्द एवं सार्थपति सागरवद्धि की सेनाओं के मध्य युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले शस्त्र-अस्त्र राजाओं की सेनाओं के शस्त्र-अस्त्रों से कम नहीं थे, और युद्ध कला प्रदर्शन भी उच्च स्तर का था। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिन्द जाति के लोग युद्ध कला में विशेष दक्ष थे। षड्विध बल के अन्तर्गत आने वाले 'पारण्य बल' में इन्हीं पुलिन्द आदि जातियों के लोगों को भरती किया जाता होगा। १० गुरिल्ला युद्ध-गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करना भी प्राचीन भारतीय सेनामों की विशेषता रही है। द्वयाश्रय महाकाव्य में भी राजा 'ग्राहरिपु' के नेतृत्व में युद्ध करने वाली जाति द्वारा छलकपट से आक्रमण करने का उल्लेख १. वराङ्ग०, १३.४७-४६ २. गृहीतदण्डासिशरासनात्मकाः । वही, १३.४७ ३. वही, १३.४६-४७ ४. वही, १३.५८ ५. वही, १३.४६-५० ६. वही, १३.५६-५७ ७. वही, १४.२३ ८. वही, १४,६ ६. वही, १४.१०.४५ १०. द्विस०, २.११ पर नेमिचन्द्रकृत पदकौमुदी दीका
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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