SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ga एवं सैन्य व्यवस्था १६५ सेनाओं ने, सुरङ्गों को खोदने तथा खाइयों को भरने का कार्य लगभग कई महीनों तक संचालित रखा ।' शत्रु का प्रतिकार करने की दृष्टि से राजपूताना सैनिकों ने परिखाओं में अग्नि गोले रख दिए तथा सुरङ्गों के मार्गों पर गर्म तेल डाल दिया था । परिणामतः शत्रु सेना प्रवेश करते समय जलभुन कर नष्ट हो गई थी । दुर्ग के आसपास यवन सेनाओं ने अपने शिविर डाल दिए किन्तु चाहमान सेना के बारण वर्षा द्वारा तङ्ग करने पर अलाउद्दीन को अपनी सेनाओं को पीछे हटाना पड़ा | हम्मीर की सेना की अपेक्षा यवन सेना संख्या में कई गुना अधिक थी। इसके अतिरिक्त हम्मीर की सेना के कई उच्चाधिकारी भी अलाउद्दीन के साथ जा मिले थे । ऐसी संकटकालीन स्थिति में हम्मीर को उसके ही पक्ष के लोगों द्वारा उत्पादित दुर्ग में कृत्रिम अन्नाभाव की विपत्ति का सामना भी करना पड़ा। दुर्ग में राजपरिवारों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण सेनाधिकारियों के परिवारों के निवास की भी समुचित व्यवस्था होती थी । ६ दुर्ग में सम्पूर्ण श्रावश्यक सामग्रियों तथा सैन्य उपकरणों का भण्डार भी होता था । ७ दुर्गयुद्ध निर्णायक युद्ध होता था । राजपूताना सैनिक इस युद्ध में विशेष दक्ष थे । ऐतिहासिकों के अनुसार सातवींआठवीं शताब्दी में दुर्ग युद्ध का विशेष का प्रचलन नहीं था । राजपूताना सैन्य व्यवस्था में ही दुर्ग युद्धों का विशेष प्रचलन था राजपूतान सैनिकों तथा यवन सैनिकों के मध्य ही अधिकांश दुर्ग युद्ध हुए थे । ६. पुलिन्द युद्ध -- सातवीं-आठवीं शताब्दी के महाकाव्य वराङ्गचरित में पुलिन्द-युद्ध का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है । वराङ्गचरित की पुलिन्द जाति दक्षिण भारत के वनों में निवास करने वाली भील जाति थी । जयन्तविजय महाकाव्य से भी इसकी पुष्टि होती है । १° ये पुलिन्द जातियाँ प्रत्यधिक युद्ध प्रिय होती थीं । " १. हम्मीर, १३.४०-४१ २ . वही, १३.४१-४३ ३. वही, १३.३७-३८ ४. वही, १३.८१-८२ ५. वही, १३.१७ ६. वही, १३.१०७ ७. वही, १३.४४-४५ ८. ६. वराङ्ग०, सर्ग - १३ १०. जयन्त०, ११.८ ११. वराङ्ग०, १३.४७ मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० २१६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy