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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज ५. रथयुद्ध'-रथारोहियों से युद्ध करने के उद्देश्य से किए जाने वाले युद्ध में, अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग तो होता ही था,२ साथ में रथ तोड़ना, रथ में लगे ध्वजा आदि को काटना भी रथ-युद्ध की उल्लेखनीय विशेषता थी।३
६. अश्व युद्ध -प्रश्व-युद्ध दोनों सेनाओं के अश्वारोहियों के मध्य होता था। अश्व अत्यधिक स्फूर्ति के साथ रण में अपना युद्ध-कौशल दिखाने के लिए प्रसिद्ध थे।
७. गजयुद्ध-गज युद्ध सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण युद्ध था। हाथियों के शरीर कवचों द्वारा सुरक्षित होते थे। तीक्ष्णमुख वाले प्रायुधों द्वारा हाथियों के शरीर पर आक्रमण किया जाता था। प्रायः हाथी मादक द्रव्य पीकर युद्ध करते थे। सम्पूर्ण युद्ध में हाथियों पर ही अधिकाधिक अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार किया जाता था।'' इसके बाद भी हस्ति सेना अन्तिम क्षणों तक शत्रु सेना को हानि पहुंचाने में अधिक समर्थ थी। लहु-लुहान होते हुए भी हाथी शत्रुओं पर पर्वत के समान टूट पड़ते थे।१२ यही कारण था कि अन्य सेनामों की अपेक्षा हस्तिसेना पर नियंत्रण पाना कठिन समझा जाता था।
८. दुर्गयुद्ध 3-हम्मीरमहाकाव्य में वर्णित दुर्गयुद्ध को १४वीं-१५वीं शताब्दी ई० के युद्ध कला बिकास के इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है । हम्मीर की राजपूताना चाहमान सेना तथा अलाउद्दीन खिलजी की यवन सेनाओं के मध्य हुए इस युद्ध में रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार करने के लिए यवन
१. वराङ्ग०, १७.७४-७६ २. चन्द्र०, १५.७४-६४ ३. वही, १५.७५ ४. वराङ्ग०, १७.७६ ५. वही, १७.७६ ६. वही, १७.१७, जयन्त०, १०.७,८ ७. वराङ्ग०, १७.७६, १८.१० ८. तेषां सनाहवतां गजानाम् । वही, १८.११ ६. ते तोमराघातविभिन्नगात्राः प्रचक्षरल्लोहिततीव्रधाराः । वही, १८. १२ १०. गजा मदान्धाः समरे रिपूणाम् । वही, १८.१२ ११. वही, १८.१३ १२. वही, १७.७५, १८.१२ १३. हम्मीर०, सर्ग १३ .