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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
लेने में पूर्ण सुविधा मिल जाती थी और आमोद-प्रमोद का उचित वातावरण भी । ' द्विसन्धान के अनुसार राजा तथा सैनिक वृन्द अपनी पत्नियों सहित वन विहार करने जाते थे तथा सलिल क्रीड़ा श्रादि का भी श्रानन्द लेते थे । अन्य सैनिकों के लिए वेश्याओं का भी प्रबन्ध होता था । 3
हम्मीर महाकाव्य में सैनिकों के मनोरञ्जनार्थ 'शृङ्गार-गोष्ठी' का उल्लेख हुआ है । इस प्रकार की 'शृङ्गार गोष्ठी' में नर्तकी द्वारा शृङ्गारिक भावना को उद्दीप्त करने वाले नृत्य होने तथा इस नृत्य के साथ-साथ गायन एवं सङ्गीत का भी प्रायोजन होने का उल्लेख श्राया है । " ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय संगीतज्ञों का एक ऐसा भ्रमरणशील व्यावसायिक दल था जो नाचने-गाने वाली स्त्रियों को साथ लेकर वाद्ययंत्रों सहित एक दुर्ग से दूसरे दुर्ग तक घूमकर सैनिकों का मनोरञ्जन करता था । हम्मीर महाकाव्य में वरिंगत 'शृङ्गार गोष्ठी' का प्रायोजन करने वाला दल ऐसा ही रहा होगा ।
यवन सैनिक मदिरापान तो करते ही थे संभवत: चाहमान सैनिक भी मदिरापान के अभ्यस्त थे । हम्मीर के सैनिक उच्चाधिकारी को अलाउद्दीन की बहन द्वारा मदिरा पिलाने का स्पष्ट उल्लेख प्राया है । ७ सिद्धान्त रूप से मदिरापान करने वाले व्यक्ति की निन्दा की गई है ।
सैन्य पशु-निवास व्यवस्था
शिविर में ठहरी हुई हाथी घोड़े प्रादि सैन्य पशुओं की रुचि एवं निवास का भी विशेष ध्यान रखा जाता था। हाथियों को जलाशय में स्नान करने तथा उनके रुचिकर भोजन की विशेष व्यवस्था थी । इसी प्रकार जल स्नान एवं पृथ्वी पर लोट लगाने आदि रुचिकर क्रियाओं द्वारा अश्वसेना के सन्तुष्ट रहने का उल्लेख भी
१. दम्पतयो गुहासु सर्वत्र पुण्यसहिताः सुखमावसन्ति । द्विस०, १४.३८ २ . वही, १५. १
३. वेश्यागरणा: परिचित्तानुपचारहेतो ० । वही, १४.४७
४. हम्मीर०, १३.१
५. वस्त्राण्युत्संवृणोति स्म प्रक्नूय न भयान्नः कः ६. Shastri, Nilkanth, Pandyan Kingdom, p. 144
७. हम्मीर०, १३.८१
८. वही, १३.६४
६. द्विस०, १४.३६, चन्द्र० १४.५५
१०. चन्द्र०, १४६२
हम्मीर०, १३.२, तथा