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________________ युद्ध एवं सैन्य व्यवस्था १६१ प्राकृतिक दृश्यों से अपना मनोरञ्जन कर सकती थी। ऐसे स्थानों पर कई दिन तक के लिए भी सेना के ठहरने की व्यवस्था की जाती थी। सैनिक पड़ावों पर व्यापारीगण अपनी-अपनी दुकानों को लगाकर पहले से ही पाकर बैठ जाते थे। ये दुकानें कपड़े को तानकर बनाई जाती थीं। सैनिकों के भोजन के लिए भी बड़े-बडे भोजनालय बना दिए जाते थे। इन भोजनालयों में से पूरियों (इड्डुरिका) आदि की गन्ध आने का उल्लेख पाया है। सभी सैनिक इन्हीं भोजनालयों में भोजन करते थे । __ राजा, सामन्त, सैनिकों के निवास की पृथक् व्यवस्था की जाती थी। राजा का निवास भवन एक बहुत बड़े प्रवेशद्वार से सुसज्जित रहता था। द्विसन्धान के अनुसार वन पंक्तियों की पीछे तथा दम्पति सैनिक गुफाओं में विश्राम करते थे। सेना के ठहरते समय यद्यपि सभी लोगों के निवास की व्यवस्था अलग अलग होती थी किन्तु सभी वर्गों के सैनिकों को निवास की ठीक सूचना न मिल पाने के कारण उनके द्वारा एक दूसरे को आवाज देकर इधर उधर बुलाने का उल्लेख भी चन्द्रप्रभचरित में आया है। सैनिक मनोरञ्जन एवं भोग-विलास जैन संस्कृत महाकाव्यों में प्राप्त सैनिकों की रुचियों एवं गतिविधियों से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश सैनिक वर्ग प्राकृतिक दृश्यों, स्त्री सौन्दर्य, तथा संगीत-गायन एवं नृत्य द्वारा अपना मनोरञ्जन करता था। चन्द्रप्रभचरित में मणिकूट पर्वत के सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों को देखने की जिज्ञासा से राजा पद्मनाभ तथा उसकी सेना वहीं ठहर जाती है। राजाओं के साथ उनकी स्त्रियां भी होती थीं° तथा सैनिक भी अपनी पत्नियों को युद्धभूमि में साथ ले जाते थे। अतः इस प्रकार के प्राकृतिक वन प्रदेशों में राजा तथा सेना को दाम्पत्य आनन्द १. चन्द्र०, १४.४२ २. वही, १४.४१ ३. वही, १४.४४ ४. वही, १४.४४ ५. वही, १४.४६ ६. वही, १४.४४ ७. द्विस०, १४.३८ ८. चन्द्र०, १४.४८ ६. वही, १४.१-४१ १०. वरांग०, २०.५६-६०, चन्द्र०, १३ २४ ११. द्विस०, १४.१२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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