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________________ युद्ध एवं सैन्य व्यवस्था १४६ उनमें एक राजा का दूसरे राजा की सीमा पर बलपूर्वक अधिकार कर लेना,' पूर्व शत्रुता होना,२ माँगी हुई वस्तु मेंट के रूप में न देना,३ कन्या की विवाहार्थ याचना करने के प्रस्ताव को ठुकरा देना,४ स्वयम्वर के समय द्वेष वश अपनी शत्रुता प्रकट करना, स्वशक्ति प्रदर्शन आदि मुख्य कारण हैं । युद्ध सम्बन्धी दूत प्रेषण एवं पत्र व्यवहार युद्ध के कारण की सूचना देने के लिये एक राजा दूसरे राजा की सभा में दूतों द्वारा अपने सन्देश भिजवाते थे। दूत या तो स्वयं उक्त सन्देश को राजा के समक्ष कहता था अथवा वह राजा की ओर से दिये गए पत्र को प्रस्तुत करता था। दूत प्रायः स्पष्टवक्ता होता था और अत्यधिक क्रोधित होने पर दूत को किसी प्रकार का दण्ड देना राजधर्म के विरुद्ध था । दूत शत्रु राजा के अभिप्राय को समझ कर अपने राजा को स्थिति से अवगत कराता या ।१० दूत के परामर्शानुसार राजा युद्ध करने या न करने का निर्णय लेते थे।'' इस प्रकार की दूत पद्धति का सभी राजा पालन करते थे। किन्तु लूट-मार करने वाली भीलों की सेना बिना किसी पूर्व सूचना के भी आक्रमण कर देती थी । क्योंकि उनका यह अाक्रमण सार्थवाह आदि जातियों की प्रभूत धन सम्पत्ति की बलपूर्वक लूटने की दृष्टि से होता था। वराङ्गचरित में यह उल्लेख मिलता है कि लगभग १२ हजार सेना के साथ पुलिन्दपति ने एक सार्थवाह के नगर को चारों ओर से घेर लिया। यह सूचना सार्थवाह के अपने कर्मचारी के द्वारा उसे बाद में प्राप्त हुई । १२ १. वराङ्ग०, २०.६ २. हम्मीर०, ४.८३ ३. वराङ्ग०, १६.८-१० ४. चन्द्र०, ६.६६ ५. हम्मीर०, ४.८२-८४ ६. वही, ११.६० ७. वरांग०, १६.१२, चन्द्र० ६.८६ ८. वराङ्ग०, १६.१० ६. चन्द्र०, ६.६०-६४, हम्मीर०, ११.६४ १०. हम्मीर०, ११.७४ ११. वही, ११.७५ १२. वराङ्ग०, १४.६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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