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________________ राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था १४१ भारत की 'कुलम्बी' अथवा 'कुन्बी' जाति के लोग रहे होंगे। इस प्रसङ्ग में टर्नर महोदय की 'इण्डो आर्यन डिक्शनरी' के वे तथ्य भी उपयोगी समझे जा सकते हैं जिनमें उन्होंने संस्कृत 'कुट म्बी' तथा प्राकृत 'कुडुम्बी' को आधुनिक पूर्वी हिन्दी तथा सिन्धी के 'कूर्मी', पश्चिमी हिन्दी के 'कुन्बी', गुजराती के 'कन्बी' तथा 'कल्मी' पुरानी गुजराती के 'कलम्बी' 'मराठी के 'कलाबी' तथा 'कुन्बी' का मूल माना है।' भाषाशास्त्रीय इस सर्वेक्षण के आधार पर सभी प्रान्तों में बोली जाने वाली तत्तद्भाषाओं में 'किसान' अर्थ की एकरूपता देखी जाती है। इस प्रकार इतिहासकारों तथा कोशकारों ने 'कुटुम्बो' शब्द के केवल उस पक्ष को विशद किया है जिसके आधार पर 'कुटुम्बी' को कृषक जाति के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है। किन्तु 'कुटुम्बी' का वर्तमान समाधान व्यवहारतः सर्वथा पूर्ण नहीं है । अभिलेखीय साक्ष्यों तथा अनेक साहित्यिक साक्ष्यों के ऐसे उद्धरण दिये जा सकते हैं जिनसे यह भावना दृढ़ होती जाती है कि कुटुम्बी' लोगों की ग्राम सङ्गठन के धरातल पर एक ऐसी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही होगी जिसके कारण 'कुटुम्बी' राजा तथा किसानों के मध्य बीच की कड़ी रहे होंगे और उन्हें ग्राम प्रशासन का महत्त्वपूर्ण अधिकारी माना जाने लगा था। ___ मध्यकालीन ग्राम सङ्गठनों को ग्रामोन्मुखी तथा आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था ने बहुत प्रभावित किया जिसे इतिहासकार सामन्तवादी अर्थव्यवस्था के रूप में भी स्पष्ट करते हैं । २ गुप्तवंश तथा पालवंश के दान पत्रों से इस व्यवस्था के उस आर्थिक एवं राजनैतिक ढाँचे की पुष्टि होती है जिसके अन्तर्गत ऐसे अनेक प्रशासकीय पदों का अस्तित्व आ गया था जो भूमिदान तथा ग्रामदान के संवैधानिक व्यवहारों की देख-रेख करते थे। इस सन्दर्भ में 'कुटुम्बी' पद विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।५ मध्ययुगीन दक्षिण भारत के ग्राम सङ्गठन के सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि 'कोडुक्कपिल्लै' नामक एक अधिकारी के पद का अस्तित्व रहा था। 9. Turner, R.L., A Comparative Dictionary of the Indo-Aryan Languages, London, 1912, p. 165 २. प्रार० एस० शर्मा, भारतीय सामन्तवाद, अनु० आदित्य नारायण सिंह, दिल्ली, १९७३, पृ० १-२ ३. Puri, B.N. History of Indian Administration, Vol. I, Bombay, 1968, p. 138 ४. Choudhari, Early Medieval Indian Village, p. 220 ५. Indian Historical Quarterly, Vol. XIX, p. 15 Meenakshi, C., Administration & Social Life under the Pallavas, Madras, 1938, p. 56
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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