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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
'कोटिक' अथवा 'कोडिय' से बहुत साम्यता रखता है । 'कोडिय' गरण में फूट पड़ने के कारण जो चार शाखाएं अथवा कुल बन गए थे उनमें 'वरिणय' अथवा ' वणिज्ज' नामक कुल भी रहा था ।' कल्पसूत्रोक्त इस सामाजिक सङ्गठन में फूट पड़ने की घटना की वसिति अभिलेख ( ल्यूडर्स संस्था - ११४७ ) से भी तुलना की जा सकती है । इस लेख में कहा गया है कि मध्यमवर्ग के कृषक तथा वणिक् लोग परस्पर टूटकर स्वतन्त्र 'गृहों' तथा 'कुटुम्बों' (कुलों) में विभक्त हो गए थे । ३ Siri Pulumayi के अनुसार इन 'गृहों' तथा 'कुटुम्बों' के मुखिया क्रमशः 'गृहपति' तथा 'कुटुम्बी' कहलाते थे । ४
कल्पसूत्र तथा प्रोपपात्तिक सूत्र में 'कोडुम्बिय' ( कौटुम्बिक ) का उल्लेख 'माम्ब' (माडम्बिक) 'तलवर' आदि प्रशासनिक अधिकारियों के साथ आया है, जो यह सिद्ध करता है कि जैन आगम ग्रन्थों के काल में 'कौडुम्बिय' अथवा 'कौटुम्बिक' प्रशासनिक पदाधिकारियों के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा था । इस सम्बन्ध में कल्पसूत्र की एक टीका के अनुसार 'कोडुम्बिय' अथवा 'कौटुम्बिक' उन अनेक 'कुटुम्ब' (कुलों) अथवा परिवारों के स्वामी थे जिन्हें प्रशासकीय दृष्टि से ‘अवलगक' अथवा ‘ग्राममहत्तर' के समकक्ष समझा जा सकता है— 'कौटुम्बिका:कतिपयकुटुम्ब प्रभवो वलगकाः ग्राममहत्तरा वा' । ७ प्रस्तुत टीका में आए 'अवलगक' को 'लगान एकत्र करने वाले ग्रामाधिकारियों' के रूप में समझना चाहिए 5 बंगाल
हजारीबाग जिले के 'दुधपनि' स्थान से प्राप्त शिलालेख में वरिंगत एक घटना के अनुसार राजा प्रादिसिंह द्वारा भ्रमरशाल्मलि नामक पल्ली ग्राम में ग्रामवासियों की इच्छा से धन धान्य सम्पन्न वणिक् को 'अवलगक' में रूप में नियुक्त करने का उल्लेख आया है । वह 'अवलगक' राजा का विशेष पक्षपाती व्यक्ति था तथा
१. Buhler, The Indian Sect of the Jainas, p. 40
I.A., Vol. XLVIII, p. 80
वही, पृ० ८०
वही, पृ० ८०
२.
३.
४.
५. कल्पसूत्र, २.६१
६. औपपात्तिकसूत्र १५
७.
८.
६.
Stein, The Jinist Studies, p. 79
तु० — 'आालवन' – फसल काटना (लू) तथा 'प्रर्वन' - पहली फसल जो गृह देवताओं को समर्पित की जाती है ।
—Turner, R.L., A Comparative Dictionary of the Indo Aryan, London, 1912, p.62
Stein, The Jinist Studies, p. 80