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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
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साथ-साथ 'कुटुम्बी' भी कहा गया है । " कौटिल्य के अर्थशास्त्र में दुर्ग-निवेश के अवसर पर राजा द्वारा कुटुम्बियों के सीमानिर्धारण की चर्चा आई है । किन्तु इस सन्दर्भ में भी 'कुटुम्बी' के अर्थ निर्धारण में मत - वैभिन्य देखा जाता है । कौटिल्य अर्थशास्त्र में आए इस 'कुटुम्बी' को प्रायः 'गृहस्थ', 'श्रमिक', 'नागरिक' निम्न वर्ग के 'दुर्गान्तवासी' ६ आदि विविध प्रर्थों में ग्रहण किया जाता है । इस प्रकार ईस्वी पूर्व के प्राचीन साहित्य में उपलब्ध 'कुटुम्ब' के परिवार अर्थ में तो कोई अनुपपत्ति नहीं किन्तु इससे सम्बद्ध 'कुटुम्बी' का स्वरूप संदिग्ध एवं अस्पष्ट जान पड़ता है ।
ईस्वी पूर्व के जैन आगम ग्रन्थ तथा जैन शिलालेख 'कुटुम्बी' के अर्थ निर्धारण की दिशा में हमारी बहुत सहायता करते हैं । जैनागम कल्पसूत्र ७ में भगवान् महावीर के आठवें उत्तराधिकारी 'सुत्थिय' द्वारा 'कोटिक' अथवा 'कोड' गरण की स्थापना का उल्लेख आया है जो कि बाद में चार शाखाओं में विभक्त हो गया था। 5 वायुपुराण में निर्दिष्ट गोत्र प्रवर्तक 'कुटुम्बी' कल्पसूत्रोक्त
१. तु० - वायुपुराण - ६१.६२-६६ तथा-
ग्राम्यतयन्ति स्म रसैश्चैव स्वयं कृतैः ।
२. तु० – 'कर्मान्त क्षेत्रवशेन वा कुटुम्बिनां सीमानां स्थापयेत्' ।
- अर्थशास्त्र, २.४.२२ सम्पादक, टी० गणपति शास्त्री; त्रिवेन्द्रम्, १९२४
३. तु० -- ' कुटुम्बियों अर्थात् साधारण गृहस्थ के कारखाने, – अर्थशास्त्र, अनु०
रामतेज शास्त्री, पृ० ६२
४.
कुटुम्बिन ऋद्धिमंतो बाह्यातरं निबासिनः ॥ वायुपुराण, ६१.६६ गुरुमंडल सीरीज, कलकत्ता, १६५६
५.
७.
८.
Families of workmen may in any other way be provided with sites befitting their occupation and field work.
Kautilya's Arthaśāstra, Sham Snastri, Mysore 1951, p. 54
'नगर में बसने वाले परिवारों के लिए निवास भूमि का निर्णय' - अर्थशास्त्र, अनु० उदयवीर शास्त्री, पृ० ११४
६. 'कुटुम्बिनां दुर्गान्तवासयितव्यानां वर्णावराणां कर्मान्तक्षेत्रवशेन... सीमानं
स्थापयेत् । '
- अर्थशास्त्र, २.४.२२, टी० गणपति शास्त्रीकृत श्रीमूल टीका
Sacred Books of the East, Vol. XXII, p. 292
Buhler, J.G., The Indian Sect of the Jainas, Calcutta, 1963, p. 40