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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज ३. ग्रामेश' – चालुक्य कालीन शासन व्यवस्था से सम्बन्धित ग्राम - शासन के उच्चाधिकारी के लिए 'ग्रामेश' का प्रयोग किया गया है। मार्ग में राजा की दिग्विजय की यात्रा अवसर पर 'मण्डलेशों' 'दुर्गपालों' के साथ 'ग्रामेशों' द्वारा राजा का अभिनन्दन करने का उल्लेख हुआ है । 'महत्तर' / 'महत्तम' तथा 'कुटुम्बी' की भी ग्राम प्रशासन में उल्लेखनीय भूमिका रही थी । 3 १२० ४. श्रेष्ठी— 'श्रेष्ठी' भी किसी समय में शासन व्यवस्था से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता था । आलोच्य युग में 'श्रेष्ठी' (सार्थाधिपति) नगरों के स्वामी होते थे तथा इनकी निजी सेना भी होती थी । इस कारण संभवत: इस युग में भी 'श्रेष्ठी' व्यापार के अतिरिक्त नगरों अथवा ग्रामों के प्रशासन में भी हाथ बंटाते थे । ६ ५. सार्थवाह – 'श्रेष्ठी' के साथ 'सार्थवाह' भी राजकार्य से सम्बद्ध थे । प्रशासन की दृष्टि से इनका भी महत्त्वपूर्ण स्थान था । ७ ६. राजपुत्र - सामन्त पुत्र मन्त्रिपुत्र - जैसाकि पहले कहा जा राजकुमारों को शासन प्रबन्ध में विशेष दक्ष कराया जाता था । राजानों तथा मन्त्रियों के पुत्रों को भी शासन प्रबन्ध के अनुभवार्थ शासन व्यवस्था से सम्बद्ध किया जाता था। 5 राजकुमार भी प्रान्तीय शासनव्यवस्था से सम्बद्ध एक १. 'The 'gramapati' corresponds to the 'gramika' of earlier records signifying the headman in the village, while 'mahattaras' were men of position or the leading men in the village'. — Puri, History of Indian Adm., pp. 237-38. २. तु० – ग्रामेशैर्दुर्गपालैश्च, मण्डलेशैश्च वर्त्मनि । – त्रिषष्टि०, २.४.२४३ ३. विशेष द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० १२५ ४. वासुदेव उपाध्याय, गुप्त साम्राज्य का इतिहास, द्वितीय खण्ड, इलाहाबाद, चुका है कि उसी प्रकार १६५२, पृ० ३४ ५. तु० – प्रपरे बहवः श्रेष्ठिसार्थवाहादयोऽपि हि । ६. — त्रिषष्टि०, २.४.३५६ तथा द्रष्टव्य, वरांग०, उपाध्याय, ग ुप्त साम्राज्य का इतिहास, पृ० ३४ ७. तु० – समीक्ष्य सार्थाधिपतिर्न तस्करो । – वरांग०, १३.८१ प्रदाप्य पाद्यं वणिजां पतिस्ततो । दुर्गपाल-श्रेष्ठि- सार्थवाहादीन् व्यस्रजत् स्वयम् । तु ० - श्रमात्य सेनापतिमन्त्रिपुत्राः सुताश्च सामन्तनरेश्वराणाम् । पुनः प्रधानद्धितमात्मजाश्च नरेन्द्रपुत्रैः सहसंप्रदानाः ॥ - वरांग०, २८.१२ ८. सर्ग—१३-१४ -वरांग, १३.८७ तथा - त्रिषष्टि०, २.४.३४५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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