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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था केन्द्रीय शासन व्यवस्था के उच्चाधिकारी-पद तथा कार्य
१. राजा (सामन्त' अथवा माण्डलिक राजा)- केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में विभिन्न मण्डलों एवं प्रदेशों के स्वामी (Governor) 'सामन्त' तथा 'माण्डलिक' राजा होते थे। मध्यकालीन भारतीय शासन व्यवस्था में इन 'सामन्त' राजाओं का शासन व्यवस्था की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान था। राजा इन अधीनस्थ सामन्त राजाओं को अपने शासन के अन्तर्गत रखते थे और केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल को इनसे जो भी लाभ हो सकता हो उसके लिए इन राथाओं को प्रयत्नशील रहना पड़ता था। प्रान्तीय शासन व्यवस्था का केन्द्रीय शासन व्यवस्था से सूत्र बंधा रहे इसलिए इन 'सामन्त' तथा 'माण्डलिक' राजारों का महत्त्वपूर्ण स्थान था। बड़े राजा के अधिकार में अनेक 'सामन्त' राजा रहते थे। अतः इन ‘सामन्त' राजाओं के ऊपर भी 'महासामन्त' का पद था जो अन्य सामन्तों से बल एवं पराक्रम की दृष्टि से श्रेष्ठ होता था। शुक्रनीति सार में 'सामन्त', 'माण्डलिक' आदि का वार्षिक आय की दृष्टि से मूल्यांकन किया गया है। 'सामन्त', 'माण्डलिक', 'राजा', 'महाराज', 'स्वराद', 'सम्राट', 'विराट्' एवं 'सार्वभौम' आदि की पारिभाषिक संज्ञाएं रूढ़ हो चुकी थीं। वार्षिक आय के अनुसार इनको उपाधियों का तारतम्य भी स्वीकार किया जाने लगा वा । उदाहरणार्थ 'सामन्त' की एक लाख से तीन लाख, 'माण्डलिक' की ४ लाख से १० लाख, 'राजा' को ११ लाख से २० लाख, 'महाराज' की २१ लाख से ५० लाख, 'स्वराट' की ५१ लाख से १ करोड़, 'सम्राट' की २ करोड़ से १० करोड़ तथा 'विराट' की ११ करोड़ (चान्दी के कार्षापण) से अधिक आय होती थी। 'सार्वभौम' इन सभी से अधिक आय वाला होता था तथा सप्तद्वीपा-पृथ्वी पर शासन करता था।
२. मंत्री-'अमात्य', 'सचिव' तथा 'मन्त्री' पदों में भेद अत्यधिक स्पष्ट नहीं
१. Samanta, Lit. 'bordering, neighouring, a neighbour, a feudatory
prince, the chief of a tributary district, is a technical official title, denoting a rank next below that of the Mahāsāmanta. --Fleet, John, Fithfull, Corpus Inscriptionum Indicarum,
Vol. III, Varanasi, 1970, p. 148, fn. I. २. शुक्रनीतिसार, १.१८२-८६ ३. चन्द्र०, १६.२३-२४ ४. चन्द्र०, ४.४७ ५. पूर्वोक्त, पृ० १०१ ६. विशेष द्रष्टव्य, शुक्रनीतिसार, १.१८२-८६