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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
नहीं है ।' बैसे तो ये तीनों संज्ञाएं पर्यायवाची प्रतीत होती हैं, किन्तु फिर भी उत्कीर्ण लेखों तथा अन्य ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर इतना निश्चित है कि ये संज्ञाएं शासन व्यवस्था में पारिभाषिक रूप से भी प्रचलित रही थीं । पद्मानन्द महाकाव्य में स्पष्ट उल्लेख हुए हैं कि राज्य में अनेक मंत्री होते थे । उन सभी मंत्रियों से ऊपर 'महामात्य का पद होता था । ' ' महामात्य' का पद एक प्रकार से दुर्लभ था । राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों की गोपनीयता बनाए रखना 'महामात्य' का विशेष कर्त्तव्य था । इसी प्रकार मंत्रियों के प्रधान पद को द्योतित करने वाले 'मन्त्रीश्वर' आदि पद 'महामात्य' के ही पर्यायवाची प्रतीत होते हैं ।
५
३. सेनापति ( चमूपति) - वैसे तो राजा ही सेना का सर्वोच्च अधिकारी होता था किन्तु सैन्य विभाग की सम्पूर्ण व्यवस्था एवं देखरेख का उत्तरदायित्व
ह
१.
Puri History of Indian Adm., p. 149, fn. 42, 49 २. मध्यकालीन शासन व्यवस्था में भी चाहे मंत्री, अमात्य, सचिव पारिभाषिक हों किन्तु जैन संस्कृत महाकाव्यों में मंत्री के सामान्य अर्थ में इनका प्रयोग हुआ है, तुलनीय - 'श्रमात्य सेनापति मन्त्रिपुत्रा:' ( वराङ्ग० २८.१२), ये मन्त्रिरणो येऽत्र मण्डलीका ( कीर्ति० २.६५), 'वस्तुपाल सचिवस्य' ( वसन्त ० ५.६५), ‘श्रीवस्तुपालते जपाले मन्त्रीश्वरौ - ( राजशेखरकृत वस्तुपालप्रबन्ध), वसन्तविलास (परिशिष्ट), पृ० ८१
३. C. I. I., Vol. III, p. 70
४.
परे च सन्निभमतिः शतान्मतिर्महामतिर्मन्त्रिवरास्त्रयः स्थिताः । - पद्मा० ३.६७ तथा वराङ्ग०, ११.८५
५. पद्मा०, ३.६८
६. श्रितोमहामात्यपदं महीपतेः, प्राग्जन्म पुण्य प्रतिहस्तकोपमः । पद्मा०, ३.१०१ ७. अङ्गानि राज्यस्य महात्मना स्वयं, सप्तापि गोप्यानि सदाऽपि मन्त्रिणा ।
- पद्मा०, ३.१००
८. तु० - आहूय मन्त्रीश्वरदण्डनाथान् । वराङ्ग०, १७.१० चमूपमन्त्रीश्वरराजपुत्राः गृहीतशस्त्रा युधि दुःप्रर्धषाः ।
—वराङ्ग०, १७.१४
६. तु० – पदातयोऽश्वाः करिणः शताङ्गाः सैन्यस्य भर्ता भरतोऽपि सर्वे ।
- पद्मा०, १७.६६