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________________ राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था तीन सौ अश्वों की मांग भी रखी थी।' इस प्रकार आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं -पन्द्रहवीं शताब्दी तक की राजनैतिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में किसी भी शक्तिशाली राजा द्वारा छोटे तथा निर्बल राजा को कोष-संग्रहण के प्रयोजन से दबाया भी जा सकता था । && उपहार बजादि से कोष-संग्रहण विवाह आदि अवसरों पर राजानों के दरबार में अनेक सामन्त राजा बहुमूल्य उपहारों को देकर राजानुकम्पा के पात्र बने रहना चाहते थे । परिणामतः राजा को उपहार के रूप में ही स्वर्ण-रत्न श्रादि प्रभूत धन सम्पत्ति प्राप्त हो जाती थी । इसी प्रकार दहेज के अवसर पर भी राजानों में परस्पर धनसम्पत्ति का प्रादान-प्रदान होता था । वरांगचरित में दहेज में एक हजार हाथी, बारह हजार घोड़े, एक लाख ग्राम, चौदह कोटि प्रमाण स्वर्ण मुद्राएं आदि मिलने का उल्लेख माया है । 3 इस प्रकार दहेज भी कोष वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण साधन रहा था । युद्धप्रारण से कोष-संग्रहण चन्द्रप्रभचरित' तथा द्वयाश्रय' महाकाव्यों में युद्ध प्रयाण के अवसर पर पराजित राजाओं से धन-सम्पत्ति ग्रहण करने का उल्लेख आया है। इसी प्रकार जयन्त विजय महाकाव्य में भी राजा को धन सम्पत्ति उपहार के रूप में मिलने के उल्लेख प्राप्त होते हैं । १. हम्मीर ! राज्यं यदि भोक्तुमीहा तत् स्वर्णलक्षं चतुरो गजेन्द्रान् । अश्वो रणानां त्रिशतीं सुतां च दत्वा किरीट कुरु नो निदेशम् ॥ - हम्मीर०, ११.६० २. वराङ्ग०, ११६७ ३. तु० - मत्तद्विपानां तु सहस्रसंख्या द्विषट्सहस्राणि तुरङ्गमानाम् । ग्रामाः शतेन प्रहताः सहस्रा हिरण्कोटयश्च चतुर्दशैव ॥ —वराङ्ग०, १६.२१ ४. तु० — तैर्दत्तां बहुविध रत्नगर्भ दण्डव्याजेनादित गुरुदक्षिणामिवासी । —चन्द्र०, १६४२ ५. द्वया०, १५.३५ ६. जयन्त०, ११.७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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