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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
प्रेक्ष्य में स्मृतिकारों प्रादि ने राजो को यह निर्देश दिए हैं कि वे अपना शासन मंत्रियों प्रादि के परामर्शों के अनुसार चलाए।' राजधर्मों के नियमों के अनुसार राजा के लिए यह आवश्यक था कि वह मन्त्रिमण्डल को भी विश्वास में ले। राजा हर्षवर्धन इसी प्रकार का राजा था तथा सदैव अपने मन्त्रियों की मन्त्रणामों को शासन कार्य में उचित आदर देता था।
मंत्रिमण्डल की उपादेयता
जैन संस्कृत महाकाव्यों के अध्ययन से यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि राजा के लिए मंत्रियों अर्थात् मन्त्रिमण्डल का परामर्श कितना उपयोगी है। जैन संस्कृत महाकाव्यों में यह मान्यता स्वीकार की गई है कि राजा को अपने मन्त्रियों तथा पुरोहितादि से भी राजकार्य में सहायता लेनी चाहिए । २ किसी भी प्रकार की कुनीति के लिए न केवल राजा ही दोषी माना जाता है अपितु उसके मन्त्रिवर्ग आदि पर भी यह दोष आता है। राजा की पराजय का एक मुख्य कारण मन्त्रियों की सम्मति को न मानना भी है।४ वराङ्गचरित में मन्त्रियों से मन्त्रणा करते हुए राजा देवमेन को मुख्य मन्त्री के मुख से यह सुनना पड़ा कि उन्होंने दूत को अपमानपूर्वक निकालकर उस समय को खो दिया है जव 'साम' उपाय का प्रयोग किया जा सकता था। अप्रत्यक्ष रूप से मन्त्रिमुख्य के इस कथन में राजा को दोषी ठहराना अभीष्ट है। राजा दूत के साथ अभद्र व्यवहार करने से पूर्व यदि मन्त्रिमण्डल से परामर्श कर लेता तो संभव है राज्य में युद्ध संकट उपस्थित नहीं हो पाता ।५ वराङ्गचरित में उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर तथा युद्ध प्रसंग को लेकर राजा द्वारा मंत्रिमण्डल से परामर्श करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। चन्द्रप्रभ
१. मनु०, ७.५५-५६, याज्ञ०, १.३१२, १७ २. वृद्धानुमत्या सकलं स्वकार्य सदा विधेहि प्रहतप्रमादः । -चन्द्र०, ४.४० पर
तु०-वद्धानुमत्या-वृद्धानां मन्त्रिपुरोहितानाम् ।' -विद्वन्मनोवल्लभा
टीका, पृ० १०४ ३. तु०-किममन्त्रि गृहं तदीयमित्यपवादेन जनस्य वारितम् ।।
-चन्द्र०, १२६४ ४. प्रकौशलं तस्य हि मन्त्रिणां च निरीक्ष्यतामित्यपरे निराहुः ।
-वराङ्ग०, १६.४१ तथा तु० १६.४२ ५. वराङ्ग०, १६.६६ ६. वही, सर्ग-१० ७. बही, १६.५०.७.