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श्रादर्श राजा के कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व
जैन संस्कृत महाकाव्यों में राजा के उच्च आदर्श प्रतिपादित किए गए हैं, यथा राजा को धर्म अर्थ काम मोक्ष के साथ न्यायपूर्वक राज्य का पालन करना चाहिए ।' राजा सदैव प्रजा को अभयदान देने वाला होता है तथा दयालु एवं हितकारी होता है। राजा को सदैव सहिष्णु होना चाहिए, इसलिए जैन मतावलम्बी राजा के राज्य में भी वर्णाश्रम व्यवस्था का समुचित प्रादर होने का उल्लेख मिलता है । 3 राजा स्वयं विद्वान् हो तथा विद्वानों का श्राश्रयदाता हो । ४ प्रजा का पोषरण, शिक्षा एवं सङ्कट निवारण राजा का कर्त्तव्य है । ५ देवभक्ति, गुरु श्रद्धा, पराक्रम, सज्जन - मैत्री आदि राजा के गुरण होते हैं। राजा सज्जनों का भाग्य विधाता एवं दुर्जनों का नाशक है, अतः प्रजा को जो भी प्राप्त होता है वह भाग्य से नहीं अपितु राजा के पुरुषार्थ से प्राप्त होता है । ७ राजा की केवल तीन ही गतियाँ में निवास 15 शौर्य, बुद्धि तथा श्रात्मपरिवार को वश में
।
राजा को अपने
मुक्त
१
हैं - धर्म - सेवा, रण में मृत्यु तथा वन विश्वास राजा के लिए प्रत्यावश्यक हैं रखना चाहिए तभी वह विपदाओं से रह सकता है । १० राजा को सदा वृद्ध मंत्री -पुरोहितों के आज्ञानुसार कार्य करना चाहिए ।' राजा प्रजाविरोधी कर्मचारियों को दण्ड दे और प्रजाहितैषी कर्मचारियों को प्रोत्साहित करे । १२ राजा को चाहिए कि वह अपनी मन्त्रणाओं को तब तक गुप्त रखे जब तक कि उनसे कार्य सिद्धि नहीं हो जाती । १3 राजा को सदा विजयेच्छु होना चाहिए और शत्रुनों की गतिविधियों पर उसके द्वारा अंकुश लगना चाहिए । १४ राजा स्वयं तो प्रजा के
१. वराङ्ग०, १.४६
२ . वही, ३.३८
३. वही, १.५१
४. वही, २.४
५.
चन्द्र०, ३.४
वराङ्ग०, २.५
द्विस०, ४.१७
८.
नैमि०, १.६२
६. हम्मीर०, ४.७४
१०. चन्द्र०, ४.३७
६.
७.
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
११. चन्द्र०, ४.४०
१२. वही, ४.४१
१३. वही, ४.४२ १४. वही, ४.३४