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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज ६८ वाद' आदि सिद्धान्त विशेष रूप से उल्लेखनीय कहे जा सकते हैं - भारतीय विचारकों के 'राज्य' विषयक सिद्धान्त सत्यकेतु विद्यालङ्कार महोदय ने उपर्युक्त 'राज्य' सम्बन्धी समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों की भारतीय धर्मशास्त्र के ग्रन्थों में अन्विति बिठाई है जिससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन भारतीय राजशास्त्रियों ने तात्त्विक दृष्टि से भी राज्य के स्वरूप पर विचार किया था । प्राचीन भारतीय राजनीति से सम्बद्ध 'मात्स्य न्याय', 3 'सावयव सिद्धान्त' ४ तथा 'देवी सिद्धान्त'" पाश्चात्य सिद्धान्तों से बहुत कुछ साम्यता रखते हैं । कौटिल्य के अर्थशास्त्र का राज-शास्त्रीय चिन्तन निःसन्देह भारतीय राजनैतिक विचारों के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है । कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राज-विद्याओं के प्रश्न को लेकर मतवैभिन्य रहा था जिसका कौटिल्य संकेत भी दिया है । ये विचारधाराएं तीन प्रकार की थीं - १. मनु आदि द्वारा त्रयी, वार्ता, दण्डनीति – तीन विद्यानों को ही राजविद्या मानना, २. बृहस्पति आदि के अनुसार वार्ता एवं दण्डनीति को ही राजविद्या के रूप में स्वीकार करना, तथा ३. उशना आदि आचार्यों द्वारा केवल मात्र दण्डनीति को ही राज-विद्या के रूप में ग्रहण करना । इन तीन विचारधाराश्नों के प्राधार पर प्राचीन भारतीय चिन्तकों ने 'धर्मप्रधान', 'अर्थप्रधान' तथा 'दण्डप्रधान' राजनीति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है । इस प्रकार भारतीय राजशास्त्र के ग्रन्थों में महाभारत, धर्मशास्त्र, पुराण एवं स्मृति ग्रन्थों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । इन ग्रन्थों में राजनीति विषयक feat सिद्धान्तों का प्रतिपादन हुआ है वे युगानुसारी- राज्य संस्थानों के लिए सदैव अनुकरणीय माने जाते रहे हैं। आलोच्य जैन संस्कृत महाकाव्यों का युग ऐतिहासिक दृष्टि से मध्य युग कहलाता है । इस काल में भी इन ग्रन्थों की मान्यतानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मध्य युग जोकि राजनैतिक चेतना की दृष्टि से 'सामन्त-युग' भी कहलाता है, क्रमशः वैदिक काल, उत्तर वैदिक काल तथा साम्राज्य काल (५००ई० पू० से ६०० ई० तक) से उत्तरवर्ती है । १. काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग - २, पृ० ५६४ २. सत्यकेतु, प्राचीन भारतीय शासन०, पृ० २६८-३१० ३. महाभारत, शान्ति०, ६६.१६ ४. शुक्रनीतिसार, ५.१२.१३ ५. मनु० ७.४ तथा मत्स्यपुराण, २२६.१ ६. श्यामलाल पाण्डेय, भारतीय राजशास्त्र प्रणेता, लखनऊ, १९६४, पृ० १०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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