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में है । दण्डी के अनुसार रसमयता ही माधुर्य है । वामन के अनुसार माधुर्य का अभिप्राय समासरहित उक्तिवैचित्र्य से है । मम्मट की मान्यता के अनुसार हृदय को भावविभोर करने की विशेषता माधुर्य गुरण में है ।
आचार्य मम्मट ने माधुर्य का लक्षण प्रस्तुत करते हुए कहा है - 'चित्त की द्रुति का कारण प्रह्लादकता 'माधुर्य' कहलाती है । '१ तात्पर्य यह है कि जिससे सहृदयजनों का हृदय द्रवित सा हो जाता है, आह्लादित हो जाता है, उसमें (आह्लाद में ) एक विशिष्ट धर्म रहता है, जिसे 'माधुर्य गुण' कहते हैं । यह माधुर्य, शृंगार आदि रसों में कहीं अधिक तथा कहीं कम होता है ।
आचार्य भामह ने भी माधुर्य, प्रोज तथा प्रसाद के रूप में तीन गुण स्वीकार किये हैं परन्तु माधुर्य का लक्षण करते हुए वे कहते हैं- 'श्रव्यं नातिसमस्तार्थशब्दं मधुरमिष्यते ।' यहाँ श्रव्य का अर्थ है - श्रवणानुकूलता-श्रुतिप्रियता । यह लक्षण समुचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि श्रुतिप्रियता तो प्रोज तथा प्रसाद में भी विद्यमान रहती है, किन्तु प्रोजस्वी काव्य में दीप्तत्व की ही अनुभूति होनी
१. श्राह्लादकत्वं माधुर्यं शृङ्गारे द्रुतिकारणम् ८२६८ कारिका - उत्तराद्ध ।
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