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नाट्यशास्त्र में आचार्य भरत ने काव्य के दस गुणों को स्वीकृति प्रदान करते हुए श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, प्रोज, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता एवं कान्ति, नामकरण द्वारा उन दस गुणों को प्रकट किया है।
अग्निपुराण में शब्दगत, अर्थगत तथा शब्दार्थोभयगत गुणों की संख्या उन्नीस मानी गई है। दण्डी ने भरत के अनुसार दस गुण स्वीकार किये हैं। वामन शब्दगत तथा अर्थगत भेद से बीस गुण स्वीकार करते हैं। इनसे मिलते-जुलते चौबीस गुण भोजराज ने स्वीकार किये हैं। प्राचार्य जयदेव ने आठ गुणों का उल्लेख किया है । आचार्य आनन्दवर्धन ने द्रुति, दीप्ति तथा व्यापकत्व के आधार पर माधुर्य, अोज तथा प्रसाद नामक तीन गुणों को स्वीकृति दी है । इनसे प्रेरणा लेकर ही आचार्य मम्मट ने वामन द्वारा निरूपित गुणों का सयुक्ति खण्डन प्रस्तुत करके माधुर्य, अोज तथा प्रसाद नामक तीन काव्य-गुणों की स्थापना की है। मम्मट का गुण-विवेचन सटीक एवं पूर्णतया वैज्ञानिक है । संक्षेप में, माधुर्य आदि को इस प्रकार समझा जा सकता है
माधुर्य
भरतमुनि के अनुसार काव्य का सौन्दर्य श्रुतिमधुरता
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