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मात्र वाक्यगत दोषों का उपाख्यान इस प्रकार प्राप्त होता है-१. प्रतिकूलवर्ण २. उपहतविसर्ग ३. लुप्तविसर्ग ४. विसन्धि ५. हतवृत्त ६. न्यूनपद ७. अधिक पद ८. कथित पद १. पतत्प्रकर्ष १०. समाप्तपुनरात्त ११. अर्थान्तरैकवाच्य १२. अभवन्मतयोग १३. अनभिहितवाच्य १४. अपदस्थपद १५. अपदस्थ समास १६-सङ्कीर्ण १७. गर्भित १८. प्रसिद्धाहत १६. भग्नप्रक्रम २०. अक्रम २१. अमतपरार्थ । __ प्राचार्य रुद्रट ने अप्रयुक्तत्व, अवाच्यत्व तथा निहितार्थ का असमर्थत्व में समन्वय प्रस्तुत किया है ।
आचार्य विश्वनाथ ने अवाच्यत्व, निहितार्थत्व आदि का असमर्थत्व से अन्तर स्पष्ट करते हुए सूक्ष्मदृष्टि का परिचय दिया है।
अर्थगत दोष ___ शब्द और वाक्य से अर्थ प्रोद्भासित होता है अतः आचार्यों ने अर्थगत दोषों का स्वरूप भी नामग्राह पूर्वक प्रदर्शित किया है
१. अपुष्ट २. कष्ट ३. व्याहत ४. पुनरुक्त ५. दुष्क्रम ६. ग्राम्य ७. सन्दिग्ध ८. निर्हेतु ६. प्रसिद्धिविरुद्ध
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