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परिकथा, खण्डकथासकलकथे, सर्गबन्धः, अभिनेयार्थम्, आख्यायिका कथे- इत्येवमादयः । " १
आचार्य आनन्दवर्धन ने इसके अतिरिक्त काव्य के तीन भेद २ स्वीकार किये हैं- १. ध्वनि २. गुणीभूतव्यंग्य ३. चित्र काव्य | आचार्य मम्मट ने भी उत्तम, मध्यम तथा अवर काव्य के रूप में काव्य के तीन भेद स्वीकार किये हैं ।
में
साहित्यदर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने पाँचवें परिच्छेद में काव्य के दो भेद ध्वनिकाव्य एवं गुणीभूतव्यंग्य काव्य के रूप में स्वीकार करके पुनः षष्ठ परिच्छेद दृश्य और श्रव्य के भेद से काव्य के दो भेद स्वीकार किए हैं। प्राचार्य विश्वनाथ चित्रकाव्य को स्वीकार नहीं करते क्योंकि उनके काव्यलक्षरण 'वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' का प्रवेश चित्रकाव्यों में नहीं होता ।
ध्वनिकाव्य तथा भेदोपभेद
आचार्य आनन्दवर्धन ने 'ध्वनि' तत्त्व का विवेचन
१. ध्वन्यालोक ३।७
२. गुणप्रधानाभ्यां व्यङ्गयस्यैव व्यवस्थिते काव्ये उभे ततोऽन्यत् तच्चित्रमभिधीयते । वही ३।४२
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