________________
संकीर्णता, वैमनस्य या प्रमाद की प्रवृत्ति बढ़ी है तब तब काव्यों की धारा मानव मात्र को कर्तव्यबोध कराने की दृष्टि से कल-कल निनाद करती हुई मुखरित हुई है तथा सर्वत्र समुचित वातावरण संस्थापित करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है-इतिहास इसका साक्षी है ।
काव्यशास्त्र की पृष्ठभूमि का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इसका प्राचीनतम नाम छन्दःशास्त्र था अतः छन्दःशास्त्र का उल्लेख वेदाङ्गों में किया गया है।
"शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्त छन्दोविचितिः ज्योतिषञ्च षडङ्गानि । उपकारत्वादलङ्कारः सप्तममङ्गम् ः इति यायावरीयः । ऋते च तत्स्वरूपपरिज्ञानाद् वेदार्थानवगतिः ।" इस प्रकार का उल्लेख काव्यमीमांसा में सम्प्राप्त होता है । इससे यह ज्ञात होता है कि कालान्तर में 'काव्यशास्त्र' ने मात्र छन्दःशास्त्र की परिधि में रहना पसन्द नहीं किया तथा स्वतन्त्र अस्तित्व धारण कर 'अलङ्कारशास्त्र' की अभिधा प्राप्त की, जिसे प्राचार्यों ने सप्तम अङ्ग की संज्ञा भी प्रदान की । प्राचार्य राजशेखर के अनुसार अलंकारशास्त्र आन्वीक्षिकी (तर्क) त्रयी, वार्ता तथा दण्ड-नीति नामक चारों विद्याओं का सार है, अतएव पञ्चम विद्या
( ३५ )
।