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पल्लवित पुष्पित हो चुकी थी। भरत का नाट्यशास्त्र रससिद्धान्त का प्राचीनतम प्रामाणिक शास्त्र है। भरत से पूर्व भी रससम्प्रदाय के वासुकि, सदाशिव, अगस्त्य, व्यास, नन्दिकेश्वर, वृद्धभरत, द्रुहिणाचार्य आदि का उल्लेख प्राप्त होता है परन्तु इनके मौलिक ग्रन्थों के अभाव में आचार्य भरत को ही रससिद्धान्त का प्रवर्तक स्वीकार किया जाता है। - रस के बिना काव्य की काव्यता पर सन्देह के प्रश्नचिह्न खड़े हो जाते हैं। अतएव काव्य का रसात्मक होना आवश्यक है । ध्वनि आदि तत्त्वों को काव्य की
आत्मा स्वीकार करने वाले प्राचार्य भो किसी-न-किसी रूप में रस की प्रमुखता के पक्षधर रहे हैं, इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है। --- काव्य और काव्यशास्त्र
काव्य तथा काव्यशास्त्र का महत्त्व सर्वविदित है, क्योंकि विश्व का कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जो काव्यात्मक पंक्तियों को न गुनगुनाता हो, सुनकर तथा नाट्य रूप में देखकर आनन्दविभोर न हो जाता हो । मनुष्य की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति काव्य के महत्त्व को और ही अधिक उजागर करती है । जब जब देश, समाज तथा जाति में
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