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काव्य के विषय में प्रसिद्ध संस्कृत-काव्यशास्त्रों की कुछ परिभाषायें इस प्रकार हैं
प्राचार्य भामह ने शब्द और अर्थ को काव्य की संज्ञा देते हुए कहा है-शब्दाथों सहितौ काव्यम् । । प्राचार्य दण्डी ने शब्दार्थ रूपी शरीर को अलंकृत
करने वाले अलंकारों को महत्त्व देते हुए काव्य का लक्षण यों प्रस्तुत किया है
तैः शरीरं च काव्यानामलंकाराश्च दशिताः । शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली ॥
प्राचार्य कुन्तक ने काव्य में शब्द और अर्थ का शोभाशाली सम्मेलन स्वीकार किया है। कवि अपनी प्रकृष्ट प्रतिभा से उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त शब्द योजित कर रचना बनाता है, वह काव्य है । सौन्दर्ययुक्त अभिव्यञ्जना काव्य का प्राण है-वक्रोक्तिः काव्यस्य जीवितम् ।
प्रानन्दवर्धनाचार्य के अनुसार काव्य वह है जिसमें वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ की प्रधानता हो
काव्यस्यात्मा ध्वनिः। प्राचार्य वामन ने रीति को काव्य की आत्मा के रूप में स्वीकार किया है-रीतिरात्मा काव्यस्य ।
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