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वामन के काव्य-स्वरूप पर अपना मत प्रस्तुत करते हुए डॉ. नगेन्द्र ने चार तथ्य उपस्थित किये हैं
१. वामन शब्द और अर्थ दोनों को समान महत्त्व देते हैं। सहित शब्द का प्रयोग न करते हुए भी वे दोनों को ही काव्य का मूल अङ्ग मानते हैं । १
२. गुण को काव्य का नित्यधर्म मानते हैं अर्थात् उसकी स्थिति, काव्य के लिये अनिवार्य है।
३. दोष को वे काव्य के लिए असह्य मानते हैं, इसीलिए सौन्दर्य का समावेश करने के लिए दोष का परिहार पहला प्रतिबन्ध है ।
४. अलंकार काव्य का अनित्यधर्म है, उसकी उपस्थिति वाञ्छनीय है, अनिवार्य नहीं ।
डॉ. नगेन्द्र ने कहा है-वामन का काव्यलक्षण उपर्युक्त लक्षणों की अपेक्षा स्थूल है। गुण और अलंकार से युक्त तथा दोषों से रहित शब्दावली तत्त्व को शब्दबद्ध नहीं
१. काव्यं ग्राह्यमलंकारात् । सौन्दर्यमलंकारः।
काव्यशब्दोऽयौं गुणालङ्कारसंस्कृतयोः शब्दार्थयोः वर्तते । भक्त्या तु शब्दार्थमात्रवचनोऽत्र गृह्यते । –अलंकारसूत्र
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