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वाल्मीकजन्मा स कविः पुराणः , कवीश्वरः सत्यवती सुतश्च । यस्य प्रणेता तदिहानवद्यं , सारस्वतं वर्त्म न कस्य वन्द्यम् ॥
सम्प्रति कविता करने वाले सहृदय महानुभाव 'कवि' पदवाच्यता की पंक्ति में आते हैं। 'कवि' पद अनेक अर्थों में अवश्य स्वीकृत है परन्तु सामान्यतः प्रसिद्धि के कारण काव्य के प्रणेता को ही 'कवि' कहा तथा समझा जाता है। 'कवेः कर्म काव्यम्' इससे स्पष्ट होता है कि कवि के द्वारा रचित रचना को काव्य कहते हैं। काव्य के सन्दर्भ में मात्र इतना कहना ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि काव्यतत्त्वमनीषियों ने काव्य के लक्षण पर विशेष रूप से वैचारिक मन्थन द्वारा हमें नये-नये लक्षण रूपी नवनीत का आस्वादन कराया है। अतः उन पर संक्षिप्त चर्चा करना भी यहाँ अप्रासंगिक नहीं होगा ।
किं नाम काव्यम् ? यह प्रश्न देखने में जितना सरल प्रतीत होता है, विवेचना की दृष्टि से उतना ही पेचीदा भी है । इसी कारण काव्य की सर्वसम्मत परिभाषा आज तक निश्चित नहीं हो सकी।
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