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बिन्दुसन्दोहसुन्दराणां सत्कविम् अन्तरामोदमनोहरत्वेन परिस्फुरद् एतत् सहृदयषट्पदचरगोचरतां नीयते ।" :
रससिद्ध कवि विल्हरण ने 'विक्रमांकदेवचरितम्' (प्रथम सर्ग) में काव्य और साहित्य की एकात्मकता इस प्रकार प्रदर्शित की हैसाहित्यपाथोदधिमन्थनोत्थं काव्यामृतं रक्षत हे कवीन्द्राः । यत्तस्य दैत्या इव लुण्ठनाय काव्यार्थचौराः प्रगुणी भवन्ति ।
हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध समालोचक डा. नगेन्द्र उक्तिवैचित्र्य तथा वर्णसंगीत के साथ-साथ रमणीय अनुभूति को काव्य के लिए आवश्यक मानते हैं ।
भारतीय वाङ्मय में कवि को उत्कृष्ट स्थान प्राप्त है। ऋगवेद में 'कवि' शब्द का प्रयोग 'आत्मा' तथा गीता में आत्मा के सूक्ष्मतम एवम् अमूर्त अर्थ में 'कवि' का प्रयोग हुआ है
D "कविं केतु धासि भानुमगे''१ 9 "कविकवित्वा दिविरूपमास'२
१. ऋग्वेद ७।६।२ ।
२. वही १०।१२४।७।।