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साहित्यविद्याजयघण्टयैव संवेदयन्ते कवयो यशांसि ।
काव्यविमर्श नामक ग्रन्थ में इस प्रकार का उल्लेख भी मुझे प्राप्त हुआ
“साहित्यशास्त्र (काव्यशास्त्र) का प्राचीन नाम क्रियाशिल्प है और यह क्रियाशिल्प काव्य-रचना की विधि का द्योतक है ।" (प्रथम उद्योत) __प्राचार्य कुन्तक ने 'वक्रोक्तिजीवितम्' में साहित्य का विशद, प्रौढ़ एवम् प्रामाणिक निरूपण किया है। उनके कथनानुसार शब्द, अर्थ का परस्पर शोभाशाली सन्तुलित उपन्यास साहित्य है
साहित्यमनयोः शोभाशालितां प्रति काप्यसौ। अन्यूनातिरिक्तत्वमनोहारिण्यवस्थितिः
प्राचार्य कुन्तक ने साहित्य के विषय में इस प्रकार और भी कहा है
"यदिदं साहित्यं नाम तद् एतावति निस्सीमनि समयाध्वनि-साहित्यशब्दमात्रेण प्रसिद्धम् । न पुनरेतस्य कविकर्मकौशलकाष्ठाधिरूढिरमणीयस्य, अद्यापि कश्चिदपि विपश्चित् 'अयमस्य परमार्थः' इति मनाङ्नाममात्रमपि विचारपदमवतीर्णः। तदद्य सरस्वतीहृदयारविन्दमकरन्द
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