________________
कार्थीभाव-दोषाहानगुणोपादानालंकारयोगरूपाः शब्दार्थयोर्द्वादशधर्माः समर्थाः साहित्यमुच्यते । १
शारदातनय २ ने इस प्रतिपत्ति को स्वीकार किया है और इन द्वादश सम्बन्धों का प्राञ्जल एवं प्रामाणिक विवेचन भी प्रस्तुत किया है ।
भोज से प्रायः एक शताब्दी पूर्व राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में साहित्य का प्रयोग 'काव्य' के लिये किया है
“शब्दार्थयोः यथावत्सहभावेन - विद्या साहित्यविद्या | पञ्चमी साहित्यविद्येति यायावरीयः । सा हि चतसृणामपि विद्यानां निस्यन्दः । "
कवि श्री विल्हरण ने 'विक्रमाङ्कदेवचरितम्' में इस प्रकार कहा हैकुण्ठत्वमायाति गुणः कवीनां साहित्यविद्याश्रमर्वाजतेषु ।
कवि नीलकण्ठ दीक्षित ने 'शिवलीलार्णव' में साहित्यशब्द का प्रयोग भी इसी प्रकार प्रस्तुत किया है
१. शृंगारप्रकाश (भोज) ।
२. भावप्रकाश, गायकवाड़ सिरीज न. ४५ (१९३०) पृ. १४५ - ५२ ।
( १७ )