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'ऐसा कोई शब्द नहीं, ऐसा कोई वाक्य नहीं, ऐसी कोई कला नहीं जो काव्य का अंग बनकर न आती हो ।'
'काव्य' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ऋग्वेद में इस प्रकार आता हैप्रात्मा यज्ञस्य रह्या सुष्वाणः पवते सुतः ।
प्रत्नं निपाति काव्यम् ।१. परियत्काव्या कविन॒म्ण वसानो अषति ।
___ स्वर्वाजी सिखासति ।२
अमरकोश में 'काव्य' के सन्दर्भ में इस प्रकार उल्लेख प्राप्त होता है-काव्यं ग्रन्थे पुमान् शके।
शुक्रो दैत्यगुरुः काव्या उशना भार्गवः कविः । कालक्रम से काव्य के लिए साहित्य शब्द का प्रयोग भी 'प्रचलित' हुआ।
"एकार्थचर्या साहित्यं संसर्ग च विवर्जयेत्"३ "तत्राभिधाविवक्षातात्पर्यप्रविभागव्यपेक्षासामर्थ्यान्वय
२. ऋक्०६६।१।
१. ऋक्० ६७।८। ३. कामन्दकीयनीतिसार।