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प्रथमपादस्य
9 द्वितीयपादस्य
सगणः
जगणः
| सगणः
ल,
नगण:
सगणः
जगणः । गु,
अथ वा
सवस्य
वचने
न,
रुचिर
वदन
स्त्रिलोच | नम्
44.44
ITS
151
॥ 115
|
।
|
॥
|
॥
|
।
तृतीयपादस्य
॥
चतुर्थपादस्य
भगरण:
नगणः
जगरणः
ल, | गु, | सगणः | जगणः | सगणः | जगणः | गु,
क्लान्तिर |
ध
| यि | तु, | विधिवत् तपांसि | विदधे | धनञ्ज
यः
।
॥
|
|
।
।।
|
|
|
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साहित्यरत्नमञ्जूषा-७१