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________________ दूसरा अधिकार। [७३ योंको पांचों प्रकारके महादुःख भोगने पड़ते थे। उनकी कृष्णलेश्या थी, वे सदा क्रूर रहते थे और क्रोधसे उनका मन सदा जलता ही रहता था ॥२६६॥ बंधन, छेदन, कदर्थन (दुःख देना,)पीडन, तापन और ताडन आदिके दुःख वे नारकी सदा सहन करते रहते थे ॥ २६७ ॥ उष्णवायु वा शीतवायुसे वे सदा पीडित रहते थे और भूख प्याससे सदा दुःखी रहते थे। उनका अवधिज्ञान दो कोस तक था, उनके शरीरकी ऊंचाई एकसोपच्चीस हाथ थी, आयु सत्रह सागरकी थी, वे सब नपुंसक थे, भयानक उनका शरीर था, वे निर्दयी थे, धर्मका लेशमात्र भी उनमें नहीं था, वे सबसे ईर्ष्या करते थे, देखने में बड़े भयंकर थे और मुंहसे सदा मार मार ही कहा करते थे ॥२६८-२७०॥आयु पूर्ण होनेपर वे नारकी वहांसे निकले और अनेक दुःखोंसे भरे हुए तथा परस्पर एक 'दूसरेके साथ विरोध करनेवाले शरीरोंमें उत्पन्न हुए ॥२७॥ गताः । रौद्रध्यानेन तास्तिस्रः सामवायिककर्मणा ॥२६५॥ तत्रापि पंचधा दुःख ते भुंजतेस्म नारकाः । कृष्णलेश्याः सदा क्रूराः क्रोधज्वलितमानसाः ॥२६६॥ वधनं छेदनं खेदं बंधनं च कदर्थनम् । पीडनं तापनं नित्यं सहतेस्म सुताडनम् ॥ २६७ ॥ उष्णशीतलवाताभ्यां पीडयंते ते निरंतराः। क्षुत्पिपासासमाकीर्णाः कोशद्वयावधीक्षणाः ॥२६८॥ सहितं पंचविंशत्या शतहस्तप्रमं वपुः। सप्तदशजलध्यायुर्दध्युस्ते पंडवेदकाः ॥२६९॥ अतिरौद्रा दयाहीना धर्मलवविवर्जिताः । मारमारेति जल्पंति मत्सरिणः कुदर्शनाः ॥ २७० ॥ ततस्ते नारकास्तस्मादायुःक्षये वि निःसृताः । भनेकदुःखसंकीर्णाः
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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