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________________ ७२ गौतमचरित्र। और वे मौन धारण कर रहे थे । इन्हीं सब कारणोंसे उन भव्य जीवोंने अपने हृदयमें उन मुनिराजका उपद्रव समझ लिया था ॥ २६० ॥ सज्जन पुरुष स्त्रियोंके कटाक्षोंसे कभी चलायमान नहीं होते हैं। क्या मेरुपर्वत प्रलयकालकी वायुसे चलायमान हो सकता है ? कभी नहीं ॥२६१॥ संसारमें मदोन्मत हाथियोंको बांधनेवाले भी बहुत हैं और सिंहके मारनेवाले भी बहुत हैं परन्तु जिनका मन स्त्रियोंमें नहीं विका है ऐसे पुरुष संसारमें बहुत थोड़े हैं ॥ २६२ ।। उन स्त्रियोंने उन मुनिराजपर जो घोर उपसर्ग किया था वह असन्त दुःखदायी था और उससे महापापका बंध हुआ था । उसी पापकर्मके उदयसे उन तीनों स्त्रियोंको कोढ़ हो गया था ॥ २६३ ॥ उन तीनोंकी ही बुद्धि कुबुद्धि होगई थी, वे सदा पापकर्ममें ही लगी रहती थीं, सब लोग उनकी निंदा करते थे और वे सदा महा दुःखी रहती थीं ।। २६४ ॥ आयु समाप्त होनेपर वे रौद्रध्यानसे मरी और सब इकट्ठे हुए पापकर्मोके उदयसे वे पांचवें नरकमें पहुंची ॥२६॥ वहांपर उन नारकिसंव्याप्तसर्वांगं मौनिनं क्षीणविग्रहम् ॥ २६० ॥ वधूकटाक्षनुन्नोपि चलते न हि सज्जनः । महान् स्वर्णाचलः किं वा प्रलयकालवायुना ॥२६१॥ मत्तेभबंधने दक्षाः संति सिंहवधेऽपि ना । विक्रियते मनो येषां योषिति विरलास्तके ॥२६२॥ मुनिघोरोपसर्गेण संजातप्रचुरैनसा । ताः कुष्टिन्यः समाजाताः भूरिदुःखप्रदायिना ॥ २६३ ॥ कुधिषणासमाकीर्णाः कुकर्मनिरताः सदा । विश्वननविनिंदिन्यो जातास्ता दुःखपूरिताः ॥२६४॥ ततः आयुक्षये मृत्वा पंचमे नरके
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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