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________________ ७४ ] गौतमचरित्र । उन सबने एकसे ही कर्मोका वध किया था इसलिये अनुक्र-मसे वे सब बिल्ली, सुअरी, कुत्ती और मुर्गीकी योनियों में उत्पन्न हुए || २७२ || वहांपर वे रातदिन पाप उत्पन्न करते रहते थे, अनेक प्रकारके दुःख सहन करते रहते थे और अनेक जीवोंकी हिंसा करते थे ||२७३ || वे उच्छिष्ट भोजन करते थे, परस्पर लड़ते थे, घरघर फिरते थे और घरघर मनुष्य उन्हें मारते थे || २७४ ॥ रौद्रध्यानसे जीवोंको नर्कगति होती है, आतंध्यानसे तियंचगति होती है, धर्म्य ध्यान से मनुष्यगति तथा देवगति होती है और शुक्ल ध्यानसे जीवोंको केवलज्ञानकी प्राप्ति होती है । तथा केवलज्ञानसे सदा रहनेवाला प्रकाशमय (ज्ञानमय) मोक्षस्थान प्राप्त होता है ।। २७५ - २७६ ।। जो दुष्ट मनुष्य शांत चित्तको धारण करनेवाले मुनिराजपर क्रोध करते हैं वे नरक जाते हैं फिर भला जो दुष्ट उनपर उपसर्ग करते हैं उनकी तो बात ही परस्परविरोधिनः ॥२७१॥ विडालशूकरश्वानकुर्कुटानां भवावलिम् । अनुक्रमेण ते प्रापुरेकत्र कर्मबंधनात् ॥ २७२ ॥ तत्र तेऽहर्निशं पापमुपार्जयंति निर्भरम् । सहते दुःखसंदोहं कुर्वति जंतुहिंसनम् ॥२७३॥ खादंति चान्नमुच्छिष्टं प्रयुद्धं ते परस्परम् । मानवताडनेनैव संभ्रमंते गृहे गृहे ॥२७४॥ रौद्रध्यानेन जीवानां दुर्गतिर्जायतेऽनिशम् । तिरश्रां गतिरार्तेन नरदेवगतिर्वृषात् ॥ २७९ ॥ प्राप्यते केवलज्ञानं शुक्लध्यानेन जंतुभिः । तस्माद्भवेच्छिवस्थानं ज्योतिर्मयं सनातनम् ॥२७६॥ मुनिभ्यः शांतचित्तेभ्यो ये क्रुध्यंति कुमानवाः । ते नस्के. प्रजायते किसु तदुपसर्गिणः ॥ २७७ ॥ जिनेंद्रगुरुशास्त्राणां निंदा
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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