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________________ ३६ ] गौतमचरित्र | । करती थीं और ब्रह्मपर खिले हुए कमलोंकी सुगंध से भ्रमण करते हुए भौंरे उन्हें दुखी कर रहे थे ॥ ६६ ॥ उन स्त्रियोंकी जलक्रीडासे जो उनके शरीर से केशर धुलकर निकल रही थी उससे वहां सुगंधित कमल भी पीले हो गये थे और उन्हीं सरोवरों में कामी पुरुष अपनी अपनी स्त्रियोंके साथ क्रीडा कर रहे थे ।। ६७ ।। उस नगरके बाहर खलियानों में अनाजोंकी राशियां शोभायमान थीं । वे राशियां गोल थीं, ऊंची थीं, शुद्ध थीं और किसानोंको आनंद देनेवालीं थीं ।। ६८ ।। वहांके खेतों में सब तरहके धान्य सदा उत्पन्न होते रहते थे । वे धान्य सुकालके मेघोंसे सींचे हुए थे और बड़े ही उत्तम थे ॥६९॥ उस शहर की सड़कोंपर पेड़ोंकी पंक्तियां लगी हुई थीं, जो कि परोपकार करनेमें तत्पर थीं, सघन उनकी छाया थी और फलके भारसे वे नम्र थीं ॥७०॥ उस नगरके चारों ओर बगीचे थे उनकी लताएं पुष्प और फलोंसे सुशोभित थीं, मनोहर थीं, सरस थीं और गुणवती थीं तथा विलासवती स्त्रियोंके समान शोभायमान थीं ॥ ७१ ॥ जलहारिण्यो यत्र सद्वापिकाजले । पद्मगंधभ्रमद्भृङ्गताडिता अतिनिर्मले ॥ ६६ ॥ जलधौतांगरागेण पीते सुगंधवा रिजे । दीव्यंते निजनारीभिस्तडागे यत्र कामिनः ॥ ६७ ॥ यद्वनखलवृंदेषु शोभते सस्यराशयः । वर्तुलाः प्रोन्नताः शुद्धाः कार्षुकानन्ददायिकाः ॥ ६८ ॥ यत्क्षेत्रेऽशेषसस्यानि प्रोत्पद्यते हि संततम् । सुकालभवमेघौघसिंचितानि शुभानि वै ॥ ६९ ॥ यत्पथि पादपाराजिः परोपकृतितत्परा । बभूव सघनच्छाया फलभारेण सन्नता ॥ ७० ॥ यदंते बाटिकावल्यः
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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