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दूसरा अधिकार |
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कमलों की पूजा करनेमें सदा तत्पर रहते थे, परोपकारी थे, सुंदर थे और उनके आचरण बहुत ही अच्छे थे ॥ ६१ ॥ वहां की स्त्रियां अपने रूपसे देवांगनाओं को भी जीतती थीं, बड़ी गुणवती थीं, सौभाग्यशालिनी थीं और पतिप्रेममें सदा तत्पर थीं ||३२|| वहां वजारोंकी दुकानोंकी पंक्तियां बड़ी अच्छी जान पड़ती थीं, रत्न, सोना, चांदी आदिसे वे भर रही थीं, सब तरहके धान्यों से शोभायमान थीं और वस्त्रोंके व्यवसायसे भरपूर थीं ॥ ६३ ॥ रात्रिमें जब वहांकी स्त्रियां अपने मधुर स्वरसे गाती थीं और उस समय कदाचित चंद्रमा उस नगरके ऊपर आ जाता था तो उसके चलानेवाले देव उस गानको सुनकर वहीं ठहर जाते थे और इस प्रकार वह चंद्रमा भी आगे नहीं बढ़ सकता था ।। ६४ ।। रात्रिमें अपने नियत स्थानपर जाने की इच्छा करनेवालीं और श्याम रंग के वस्त्रों से सुशोभित ऐसी वहांकी वेश्याएं लहर लेती हुई नदी के समान बहुत ही अच्छी जान पड़ती थीं ॥ ३५ ॥ वहांकी बावडियों के निर्मल जलमें जल भरनेवालीं पनिहारियां क्रीडा शोभना चारा जिनपादार्चने रताः । बभूवुर्मानवा यत्र परोपकृतिनः शुभाः ॥ ६१ ॥ जयंति योषिता यत्र स्वरूपेण सुरांगनाः । सुगुणाढ्याः ससौभाग्या धवस्नेहपरायणाः ॥ ६२ ॥ हट्टश्रेणिः परा भाति रत्नस्वर्णादिसंभृता । अशेषलस्यसद्राशिः सवसनक्रियाणका ॥६३॥ गंतु शशाक रात्रौ न यत्रोपरि गतो विधुः । कामिनीकंठसंजातगीत संरुद्धवाहनः ॥ ६४ ॥ यत्र पण्यागता रेजुर्निशीथे गमनोत्सुकाः । श्यामवस्त्रधराः कांता नद्य इव सविभ्रमाः ||६९ || क्रीडंति