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गौतमचरित्र। मानो विधाताने स्वर्गकी अलका नगरीको जीतनेके लिये ही यह नगर बनाया हो ॥५६॥ उसके चारों ओर एक कोट था जोकि उंचाईसे आकाशको छूता था और फैलावमें बादलोंके समान था तथा इसीलिये उसने मानों अपने क्रोधसे हो सूर्यका तेज भी रोक रक्खा था ॥ ५७॥ उस कोटके चारों ओर एक खाई थी जोकि शत्रुओंको भय उत्पन्न करनेवाली थी, असन्त निर्मल, मनोहर गंभीर और सरस (रस वा जलसे भरी हुई ) थी तथा इसीलिये वह अच्छे कविकी कविताके समान सुशोभित होती थी॥ ५८ ॥ कुदोंके पुष्पोंके समान श्वेत-उज्वल ऐसे वहांके जिनालय वायुसे फहराती हुई अपने शिखरकी ध्वजारूपी हाथोंसे मानों दूरसे ही भव्य जीवोंको बुला रहे थे॥५९॥ वहांके मकानोंकी पंक्तियां बड़ी ही ऊंची थीं, उनके चारों ओर चित्र बने हुए थे, वे वरफ और चंद्रमाके समान श्वेत थीं और इसीलिये ऐसी शोभायमान हो रही थीं मानों कीर्तिकी सुन्दर मूर्ति ही बनी हो ॥ ६० ॥ वहां के मनुष्य अच्छे दानी थे, भगवान जिनेन्द्रदेवके चरणवाणारसी नाम पुरमस्ति सुशोभनम् । अलका नगरं जेतुं विधात्रा निर्मितं वरम् ॥५६॥ प्राकारोरानते यत्र तुंगतास्टशितांबरः । येनारुद्धं रस्ते नो रोपादिवाभ्रविस्तृतम् ॥ ५७ ॥ यत्खातिका परा भाति वैरिवर्गभयप्रदा । निर्मला सरमा रम्या गंभीरेव कवेः सुगीः ॥१८॥ यति जिनगेहानि यत्र च भव्यजन्मिनः । कुंदोज्वलानि बातेन चलत्सद्ध्वजपाणिना ॥१९॥ सचित्रा यत्र राते प्रोतुंगाः सौधराजयः । तुषारचन्द्रमाश्वेताः परा वा कीर्तिमूर्तयः ॥ ६० ॥ सत्यामाः