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________________ दुसरा अधिकार। [३३ पिता, भाई, बंधु आदिसे रहित थीं। उन्हें देखकर राजाके नेत्र प्रफुल्लित हो गये तथा मुख और मन आनंदित होगया ॥५०-५१ ॥ तदनंतर राजाने उन मुनिराजको नमस्कार किया, उनकी स्तुति की और फिर पूछा कि इन कन्याओंको देखकर मेरे हृदयमें प्रेम क्यों उत्पन्न हो आया है ? ॥१२॥ इसके उत्तर में वे मुनिराज कहने लगे कि इनके साथ तेरा प्रेम उत्पन्न होनेका कारण पहिले भवमें उत्पन्न हुआ है । वह मैं कहता हूं तू सुन ॥ ५३॥ इसी भरतक्षेत्रमें एक काशी देश है जो कि बहुत बड़ा है, तीर्थकर परमदेवके पंचकल्याणकोंसे सुशोभित है, अनेक नगर, गांव और पत्तन आदिसे शोभायमान है, रत्नोंकी खानिसे भरपूर है और अनेक प्रकारकी शोभासे सुशोभित है ॥ ५४-५५ ॥ उसी काशी देशमें एक बनारस नामका नगर है जो कि बहुत ही सुंदर है और ऐसा मालूम होता है निजे चित्ते महीचंद्रस्तुतोष सः ॥ ४९ ॥ इतः महीपतिर्दृष्ट्वा तिस्रः कन्याः कुटंबिनः । बभूव विकसन्नेत्रो हर्षिताननमानसः ॥ १० ॥ दुष्टशीलाः सदा दीनास्तीव्रदुःखेन पीडिताः । श्यामवर्णा दयाहीनाः पितृबांधववर्जिताः ॥५१॥ (युग्मम्)। पप्रच्छेति नृपो नत्वा स्तुत्वा तं मुनिपुंगवम् । इमाः कन्याः समालोक्य स्नेहो जातः कथं मम ॥१२॥ प्रोवाचेति मुनिभूपमाभिस्ते स्नेह कारणम् । पूर्वभवांतरे जातं शृणु त्वं च गदाम्यहम् ॥५३॥ इहैव भारते क्षेत्रे काशी देशोऽस्ति विस्तृतः। सत्तीर्थकरदेवानां पंचकल्याणभूषितः॥५४॥ अनेकनगरग्रामपत्तनादिविराजितः । रत्नखनि समाकीर्णः नानाशोभासमन्वितः ॥५५॥ तत्र
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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