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गौतमचरित्र ।
नीच, कोढ़ी, चिंतित, दुःखी, मानसिक तथा शारीरिक अनेक: व्याधियोंसे पीड़ित और अनेक दुःखोंसे दुःखी उत्पन्न होते हैं ॥ ४४ ॥ पापकर्मके उदयसे ही जीवोंके अपयश बढ़ानेवाले दुराचारी, सदा कलह करनेवाले और अयन्त दुःख देनेवाले कुपुत्र उत्पन्न होते हैं ॥ ४५ ॥ पापकर्मके उदयसे ही गृहस्थियोंको काले रंगकी, लम्बे शरीरकी, टेढ़ी नाकवाली, दुर्वचन कहनेवाली और भयङ्कर स्त्रियाँ प्राप्त होती हैं || ४६ ॥ पापकर्मके उदयसे ही मनुष्यों को भीख मांग मांगकर प्राप्त हुआ, स्वाद रहित, नीरस और मिट्टी के बर्तनमें रक्खा हुआ कुभोजन खानेके लिये मिलता है || ४७|| हे राजन् ! इस संसार में जो कुछ बुरा और दुःख देनेवाला है वह सब पापरूपी वृक्षों का ही फल समझना चाहिये ॥ ४८ ॥ इसप्रकार पाप, धर्म और उन दोनोंके फलों को सुनकर राजा महीचन्द्र अपने चित्तमें बहुत संतुष्ट हुआ ।। ४९ ।। इधर राजाने कुटम्बकी बैठी हुई तीन कन्याएं देखीं जो कि दुष्ट स्वभावकी थीं, सदा दीन थीं, तीव्र दुःख से दुख थीं, काले रंग की थीं, दया रहित थीं और माता युक्ता दुःखिताः पापतो ध्रुवम् ॥ ४४ ॥ कुयशसो दुराचारा नित्यं कलहकारिणः । पापोदयात्प्रजायते कुतनयाः प्रदुःखदाः ॥ ४५ ॥ श्यामवर्णाश्व दीर्घाग्यो वक्रनामाः भयानकाः । दुर्वचनाः स्त्रियो नृणां नायंते पापतो गृहे ॥ ४६ ॥ विरसं याचनाप्राप्तं मृत्तिकाभाजन स्थितम् । स्वादहीनं सदा भोज्यं भुंजन्ते पापतो नराः ॥ ४७ ॥ इत्यादिकं हि यत्किंचिदशोभनं प्रदुःखदम् । तत्सर्वं विद्धि भूमीश ! पापमहीरुहां फलम् ॥ ४८ ॥ इतिपापवृष स्तोमफलमुत्पत्तिसंयुतम् । समाकर्ण्य