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दूसरा अधिकार |
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वहां पर सरोग राजहंस ही थे अर्थात् राजहंस ही सरोग अर्थात सरोवरोंपर रहनेवाले थे अन्य कोई सरोग अर्थात रोगी नहीं था, ताडन कपासका ही होता था, कपासकी ही रुई निकाली जाती थी और किसीका ताडन नहीं होता था। वहांपरं पतन वृक्षोंके पत्तों का ही होता था वे ही ऊपर से नीचे गिरते थे और किसीका पतन नहीं होता था तथा बंधन केशपाशोंका ही होता था, केशपाश ही बांधे जाते थे और किसीका बंधन नहीं होता था । ७२ || वहांपर दंड ध्वजाओं में ही था और किसीको दंड नहीं दिया जाता था, भंग कवियोंके रचे हुए छंदों में ही था और किसीका भंग नहीं होता था, हरण स्त्रियोंके हृदयमें ही था, स्त्रियोंके हृदय ही पुरुषोंके मनको हरण करते थे और किसीका हरण नहीं होता था और भयसे उत्पन्न हुआ शब्द नवोढा स्त्रियों में ही था और कोई भयभीत नहीं था || ७३ || उस नगर में राजा विश्वलोचन राज्य करता था । वह राजा शत्रुओंके समुदायरूपी हिरणोंके लिये केसरी था और अपनी कांतिसे सूर्यको भी जीतता था ॥ ७४ ॥ वह राजा याचकोंके लिये इच्छासे भी अधिक दान देता था और सपुष्पाः भांति सत्फलाः । गुणाढ्याः सरसाः कम्रा नार्य इव सविभ्रमाः ॥७१॥ सरोगा राजहंसाः स्युः कार्पासे यत्र ताडनम् । पतनं वृक्षपत्रेषु केशपाशेषु बंधनम् ॥ ७२ ॥ यत्र ध्वजेषु दंडोऽपि भंगो वृत्तेषु दृश्यते । हरणं वनिता चित्ते प्रमदासु भयारवः ॥ ७३ ॥ तदीश्वरो महाराजो वरोऽभूद्विश्वलोचनः । वैरिकुलैणपंचास्यः स्वकांत्या जितभास्करः ॥ ७४ ॥ ददौ कांक्षाधिकं दानं याचकेभ्योऽनिशं नृपः । कल्पवृक्षं