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प्रथम अधिकार।
[१६ गर्दा, शम, भक्ति, वात्सल्य और कृपा ये आठ सम्यग्दर्शनके. गुण कहलाते हैं ॥ ८९ ॥ भूख, प्यास, बुढ़ापा, द्वेष, निद्रा, भय, क्रोध, राग, आश्चर्य, मद, विषाद, पसीना, जन्म, मरण, खेद, मोह, चिंता, रति ये अठारह दोष कहलाते हैं । (सर्वज्ञ देव इन्हीं अठारह दोषोंसे रहित होते हैं ) ॥१०॥ आठ मद, तीन मूढता, छह अनायतन, और शंका, कांक्षा आदि आठ दोष इसप्रकार सम्यग्दर्शनके पच्चीस दोष कहलाते हैं ॥९१॥ बृत (जुआ), मांस, मद्य, वेश्या, परस्त्री, चोरी और शिकार ये सात व्यसन कहलाते हैं । बुद्धिमानोंको इन सातों व्यसनोंका त्याग कर देना चाहिये ॥ ९२ ॥ जाति, कुल, धन, रूप, ज्ञान, तप, बल, बड़प्पन, इन आठोंका अभिमान करना आठ मद कहलाते हैं । विद्वानोंको इन आठों मदोंका त्याग कर देना चाहिये ॥ ९३ ।। मद्य, मांस, मधुका साग और पांचों उदंबरोंका साग ये आठ मूलगुण कहलाते हैं। प्रत्येक गृहस्थको इन आठों मूलगुणोंका पालन अवश्य करना चाहिये श्रद्धा या सम्यक्त्वं मतं हि तत् ॥ ८८ ॥ संवेगश्चापि निर्वेदो निंदा गर्दा तथा शमः । सम्यक्त्वेऽष्टौ गुणाः संति भक्तिर्वात्सल्यकं कृपा. ॥८९॥क्षुत्तट्जरारतिनिद्रा भीरुट रागोद्भुतं स्मयः। विषादस्वेदजन्मांताः खेदमोहौ स्मृतिर्हिषः ॥९०॥ अष्टौ मदास्त्रयो मूढास्तथानायतनानि षट् । अष्टौ शंकादयश्चापि दृष्टिदोषाः बुधैर्मताः॥ ९१ ॥ द्यूतं मांस सुरापानं वेश्यान्यदारसेवने । चौयं च मृगया सप्त व्यसनानि त्यजेसुधीः ॥ ९२ ॥ जातिः महाकुलो लक्ष्मीः रूपं ज्ञानं तपो बलम् । शिल्पिरितिमदाश्चाष्टौ कर्तव्या नहि कोविदैः ॥९३॥ मद्यमांसमधु