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________________ गातमा गौतमचरित्र। अधिगम वा उपदेशादिकसे होनेवाला अधिगमज । इन दोनोंके औपशमिक, क्षायिक तथा क्षायोपशमिकके भेदसे तीन तीन भेद श्री जिनेंद्रदेवने कहे हैं ॥८४॥ अनंतानुंवधी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सम्यक्प्रकृतिमिथ्यात्व इन सातों प्रकृतियोंके उपशम होनेसे औपशमिक सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, इन सातों प्रकृतियोंके क्षय होनेसे सायिक सम्यग्दर्शन होता है और पहिलेकी छह प्रकृतियोंके उदयाभावी क्षय होनेसे तथा उन्हीं सत्तावस्थित प्रकृतियोंके उपशम होनेसे तथा देशघाती सम्यक्झकृतिमिथ्यात्वके उदय होनेसे क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है ॥ ८५ ॥ पदार्थो के सच्चे ज्ञानको सम्यग्ज्ञान कहते हैं। वह सम्यग्ज्ञान मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञानके भेदसे पांच प्रकारका कहा जाता है ॥८६॥ जैन शास्त्रोंमें पापरूप क्रियाओं के साग करनेको सम्यकचारित्र कहते हैं। पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्तिके भेदसे वह चारित्र तेरह प्रकारका गिना जाता है।।८७॥ अठारह दोषोंसे रहित सर्वज्ञ देवमें श्रद्धान करना, अहिंसा रूप धर्ममें श्रद्धान करना और परिग्रह रहित गुरुमें श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन कहलाता है ।।८८॥ संवेग, निर्वेद, निंदा, ॥८४॥ सप्तानां प्रकृतीनां वै शमादुपशमं क्षयात् । क्षायिक मिश्रकं पष्टशमादेकोदयात्पुनः ॥८६॥ प्रबोधो यत्पदार्थानां सम्यग्ज्ञान तदुच्यते । तच्च पंचविधं ज्ञेयं मतिश्रुतादिभेदतः ॥ ८६ ॥ पापक्रियानिवृत्तियत्तच्चारित्रं जिनागमे । महाव्रतादिभेदेन त्रयोदशविधं मतम् ॥ ७ ॥ दोषैर्मुक्ते च सर्वज्ञे धर्म हिंसादिवनिते । निःसंगे सुगुरौ
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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