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________________ १४] गौतमचरित्र। जको खबर कर दे कि माली आपके समीप आना चाहता है ॥ ६३ ॥ द्वारपालने जाकर महाराजसे निवेदन किया कि हे महाराज ! माली आया है और यहां आनेके लिये आपकी आज्ञा मांगरहा है॥६४॥ महाराजने द्वारपालको आज्ञा दी कि तुम शीघ्र ही उसे यहां लेआओ। तदनन्तर वह माली उस द्वारपालकी आज्ञासे महाराजके समीप पहुंचा।। ६५ ।। उस राजसभामें सिंहासनपर विराजमान हुए महाराज श्रेणिकको देखकर उस मालीने हाथ जोड़े और फिर लाये हुए फल पुष्प समर्पण कर नमस्कार किया ॥६६॥ असमयमें उत्पन्न हुए और असंत आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले उन मनोहर फल पुष्पोंको देखकर महाराज श्रेणिक अपने हृदयमें बहुत ही प्रसन्न हुए ॥ ६७ ॥ तथा उन्होंने उस मालीसे पूछा कि तू कल्याण करनेवाले इन फल पुष्पोंको कहांसे लाया है ? इसके उत्तरमें मालीने महाराजसे मीठे वचनोंमें कहा कि हे महाराज! विपुलाचल पर्वतके मस्तकपर तीनों लोकोंके इंद्रोंके द्वारा पूज्य ऐसे द्वारपालेति राजानं त्वं समादिश । बनपालः समायातुमिच्छति भवदंतिकम् ॥ ६३ ॥ बनाधिपः समायातस्तवादेशं स वांच्छते । सोपि तत्र ततो गत्वा जगादेति क्षितीश्वरम् ॥६४॥ राजावादीद्वचो द्वाःस्थ तेनात्रागम्यतां द्रुतम्। बनमाली तदादेशाजगाम नृपसन्निधिम् ॥६५॥ सिंहासने समासीनं पार्थिव वीक्ष्य संसदि । सोऽपि पुष्पफलं दत्वा प्रणनाम कृतांजलिः ॥६६॥ अकालसंभवं कांतं भूरिविस्मयकारणम् । पुष्पफलादिकं दृष्ट्वा जहर्ष श्रेणिको हृदि ॥६५॥ आनीतानि त्वया कस्मादिमानि शर्मदानि वै । सोऽब्रवीदिति तां सूक्तिं बल्लभां बन
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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