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________________ प्रथम अधिकार। [१३ दूर करते थे ॥ ५७॥ उन भगवान् महावीरस्वामीके साथ गौतम गणधर आदि अनेक मुनियोंका समुदाय था और सुरेन्द्र, नरेन्द्र, खगेन्द्र आदि सब उनके चरणकमलोंकी सेवा करते थे ।। ५८ ।। उन भगवान् महावीरस्वामीके पुण्यके माहात्म्यसे सिंह, हाथी, चूहे, बिल्ली आदि जातिविरोधी जीव भी अपना अपना वैर छोड़कर परस्पर प्रेम करने लगगये थे ॥५९ ॥ भगवानके पधारनेके साथ ही सब वृक्ष फलफूलोंसे सुशोभित होगये थे, सब वृक्षोंसे सुगन्ध छूटने लगी थी और वे सब कल्पवृक्षोंके समान असन्त सुन्दर दिखाई देने लगगये थे ॥३०॥ इसप्रकार भगवान् महावीरस्वामीको देखकर मालीके हृदयमें बड़ा ही आश्चर्य हुआ और उसने हाथ जोड़कर भगवानको नमस्कार किया ॥ ६१॥ तदनंतर उसने सब ऋतुओंके फल फूल लिये और फिर वह प्रसन्नमुख होकर महाराज श्रेणिकके राजभवनके द्वारपर जा पहुंचा ॥ १२ ॥ मालीने वहां जाकर द्वारपालसे कहा कि तू महारानाम् । पापविषं हरन् स्वामी छत्रत्रयविभूषितः॥१७॥ श्रीगौतमगणेद्रादिमुनिवृन्दसमाश्रितः।सुरासुरनराधीशसेव्यमानक्रमाम्बुजः॥१८॥ (त्रिभिः कुलकम् ) ॥ यत्पुण्यस्य सुमाहात्म्यादभूवन्मुक्तवैरिणः । सिंहनागविडालाखुप्रमुखाः प्रीतिमंडिताः ॥ ५९ ॥ यदागमाद्रुमाः सर्वेऽभूवन् सत्फलिताः शुभाः । सपुष्पाः कल्पवृक्षा वा सुरभिगंधसंयुताः ॥६०॥ एवं विधं जिन वीरं दृष्ट्वा साश्चर्यमानसः । बनमाली ननामासौ संयोजितकरांजलिः ॥ ६१ ॥ सर्वत्ज फलं पुष्पं गृहीत्वा बनमालिकः । भूपतिमंदिरद्वारे संस्थितो विकचाननः ॥६२॥ तेनोक्तं
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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